आज है गुरु प्रदोष व्रत, ऐसे करे शिव जी की पूजा

आज भाद्रपद माह का दूसरा प्रदोष व्रत है. गुरुवार दिन होने के कारण यह गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) है. इस दिन व्रत रखने और शिव पूजा करने से कार्यों में सफलता, शत्रुओं पर विजय, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है. यदि आपको किसी विशेष कार्य योजना में सफलता प्राप्त करनी है

Update: 2022-09-08 06:07 GMT

आज भाद्रपद माह का दूसरा प्रदोष व्रत है. गुरुवार दिन होने के कारण यह गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) है. इस दिन व्रत रखने और शिव पूजा करने से कार्यों में सफलता, शत्रुओं पर विजय, ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है. यदि आपको किसी विशेष कार्य योजना में सफलता प्राप्त करनी है तो गुरु प्रदोष का व्रत विधि विधान से करना चाहिए. इस व्रत को करने से ही इंद्र देव ने वृत्तासुर को हराने में सफलता पाई थी. यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए ही जाना जाता है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डा. गणेश मिश्र से जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत की पूजा विधि के बारे में.

गुरु प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त

भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारंभः आज 12 बजकर 04 एएम पर

भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी तिथि का समापनः आज रात 09 बजकर 02 मिनट पर

प्रदोष पूजा का शुभ समयः आज शाम 06 बजकर 35 मिनट से रात 08 बजकर 52 मिनट तक

रवि योगः आज दोपहर 01 बजकर 46 मिनट से कल सुबह 06 बजकर 03 मिनट तक

गुरु प्रदोष व्रत और पूजा विधि

1. आज प्रातः स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करें. उसके बाद हाथ में जल, पुष्प और अक्षत् लेकर गुरु प्रदोष व्रत और शिव पूजा का संकल्प करें.

2. दिन में आप दैनिक पूजा कर लें. उसके बाद शाम को प्रदोष मुहूर्त में अपने घर पर या फिर किसी शिव मंदिर में पूजा करें. सबसे पहले शिवलिंग का गंगाजल और गाय के दूध से अभिषेक करें.

3. इसके पश्चात शिवलिंग का चंदन, भस्म, फूल, माला, वस्त्र आदि से श्रृंगार करें. उसके बाद महादेव को बेलपत्र, भांग, मदार पुष्प, धतूरा, शहद, अक्षत्, शक्कर, फल, मिठाई आदि चढ़ाएं.

4. इसके बाद आप भगवान शिव के रक्षा कवच और गुरु प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें. इस व्रत कथा में बताया गया है कि इंद्र देव ने अपने शत्रु वृत्तासुर पर विजय कैसे प्राप्त किया.

5. अब पूजा के अंत में शिव जी की आरती घी के दीपक स करें. समापन के बाद क्षमा प्रार्थना करके अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए विनती कर लें.

6. रात्रि के समय में जागरण करें. फिर अगले दिन सुबह ब्राह्मण को दान दक्षिणा देकर पारण करें. पारण करने से व्रत पूर्ण होता है.


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