आज है भौम प्रदोष व्रत, जानें भगवान शिव की कैसे करें पूजा

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने में त्रयोदशी तिथि को दो बार भौम प्रदोष व्रत आता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है.

Update: 2021-01-26 07:27 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने में त्रयोदशी तिथि को दो बार भौम प्रदोष व्रत आता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है. भौम का अर्थ मंगल होता है. इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा. आज यानी 26 जवरी को भौम प्रदोष व्रत है. इस दिन भागवान शिव के मंत्रो, जाप, शिव चलीसा और शिव पुराण का पाठ करना लाभदायक होता है. इस प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, गंगाजल आदि अर्पित करना उत्तम और कल्याणकारी माना जाता है.

भौम प्रदोष पूजा मुहूर्त
प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही करने का महत्व है. सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पूर्व का समय प्रदोष काल होता है. इस बार 26 जनवरी को भौम प्रदोष व्रत की पूजा के लिए कुल 02 घंटे 39 मिनट का समय मिल रहा है. आपको उस दिन शाम को 05 बजकर 56 मिनट से रात 08 बजकर 35 मिनट के मध्य भगवान शिव की पूजा कर लेनी चाहिए.
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
भौम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि- विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि जो लोग भौम प्रदोष व्रत रखते है उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. जो लोग यह व्रत करते है वह स्वस्थ रहते है. भौम प्रदोष व्रत करने से मंगल दोष से छुटकारा मिल जाता है.
ये है व्रत कथा
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हो गई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन पोषण किया.
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था.स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.


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