हनुमान जयंती पर जीवन की बाधाओं को दूर करने के लिए पढ़ें हनुमान चालीसा

वैदिक ग्रंथों में मंगलवार का दिन सबसे शुभ माना गया है.

Update: 2021-04-27 02:29 GMT

वैदिक ग्रंथों में मंगलवार का दिन सबसे शुभ माना गया है. कहते हैं कि कलियुग में हनुमान जी (Hanuman Ji) ही स्थायी भगवान हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगलवार का दिन हनुमान जी का होता है और आज हनुमान जयंती है. इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. हनुमान जी की कृपा पाने के लिए भगवान राम (Lord Rama) का सुमिरन करना चाहिए और नित्य हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का पाठ करना चाहिए. लॉकडाउन के चलते आज के समय में लोगों के मन में शंका, भय, निराशा, अनिश्‍चितता, क्रोध और कई तरह की मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं. विज्ञान की मानें तो भय और क्रोध इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है. वहीं इम्यून सिस्टम का संतुलन बिगड़ने से जल्दी से रोग से लोग ग्रसित हो जाते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं किस तरह हनुमान चालीसा का पाठ आपको फायदा पहुंचा सकता है. हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हनुमान चालीसा पढ़ने का लाभ
हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी भक्त के मन की मुराद पूरी करते हैं.
यदि कोई आर्थिक संकट में हो तो हनुमान चालीसा का पाठ करें. हनुमान जी प्रसन्न होकर आर्थिक संकट दूर करते हैं
जब भी हनुमान चालीसा का पाठ करने का प्रण करें, तो शुरुआत मंगलवार के दिन से ही करें. मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है और इसदिन से हनुमान चालीसा का पाठ करने से उसे पूर्ण करने के लिए सफलता भी मिलती है.

यदि आपको कोई अनजाना भय सताए या फिर शत्रुओं की ताकत बढ़ती हुई दिखाई दे तो रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें. हनुमत कृपा से आपको बल की प्राप्ति होगी और जीवन का हर ऐसा संकट अपने आप ही दूर हो जाएगा.
जिन लोगों को रात को सही से नींद नहीं आती, भयानक स्वप्न भी सताते हैं, उन्हें रात सोने से पहले हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए. हनुमान जी की कृपा से भय दूर होगा और मन को शांति मिलेगी. कुछ ही दिनों में अच्छी नींद भी आने लगेगी.
विद्यार्थी यदि हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो उन्हें शिक्षा में सफलता पाने में मदद मिलती है. हनुमान चालीसा का पाठ मन और दिमाग को शांत करके एकाग्रता बढ़ाता है, जो कि हर विद्यार्थी के लिए बेहद जरूरी है.

दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।



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