अखण्ड़ सौभाग्य प्राप्ति के लिए जरूर करे कजरी तीज का व्रत
कजरी तीज को बूढ़ी तीज या सतूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है।
कजरी तीज को बूढ़ी तीज या सतूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज भादो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष कजरी तीज का व्रत 25 अगस्त दिन बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखण्ड़ सौभाग्य की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। सांय काल में नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है, और व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य दे कर किया जाता है। कजरी तीज का व्रत विशेष रूप से राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के क्षेत्र में रखा जाता है। आइए जानते हैं कजरी तीज के व्रत और पूजन की विधि...
कजरी तीज व्रत की पूजन सामग्री
कजरी तीज का व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने पती की लंबी आयु और अखण्ड़ सौभाग्य की प्राप्ति के लिए रखती हैं। कुवांरी लड़कियां भी इच्छित वर की प्राप्ति के लिए कजरी तीज का व्रत रखती हैं। व्रत अत्यंत कठिन होने के कारण पूजन सामग्री एक दिन पहले ही एकत्र कर लेना चाहिए। कजरी तीज में श्रृगांर का सामान, मेंहदी, लाल चुनरी, बिंदी, चूड़ियां, दूध, धूप, दीप और चना का सत्तू, फल, फूल चढ़ाया जाता है। इसके अलावा नीमड़ी माता को चना सत्तू और माल पुए का भोग लगाया जाता है।
कजरी तीज की पूजन विधि
कजरी तीज के दिन नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है। इसके लिए नीम की डाल को चुनरी पहना कर नीमड़ी माता की स्थापना की जाती है। घर में ही गोबर और मिट्टी से एक छोटा सा तलाब बनाकर इसे दूध और जल से भरा जाता है। दिन भर निर्जल व्रत रख कर महिलाएं शाम के समय पूरा श्रृगांर कर पूजन करती हैं। नीमड़ी माता को धूप,दीप और फल, फूल चढ़ाना चाहिए। इसके बाद माता को श्रृगांर का सामान और लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। इस दिन महिलांए कजरी तीज की व्रत कथा का पाठ करके, मां को चना सत्तू और माल पुए का भोग लगाती हैं। व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य दे कर किया जाता है।