वास्तु शास्त्र में दहलीज़ के है विशेष महत्व
. वास्तु के अनुसार दहलीज़ टूटी-फूटी या खंडित नहीं होना चाहिए।
द्वार की चौखट के नीचे वाली लकड़ी या पत्थर जो ज़मीन पर रहती है उसे आम बोलचाल की भाषा में देहरी, देहली और डेली कहते हैं परंतु सही शब्द है दहलीज़ या डेहरी। इसे द्वारपिंडी, ड्योढ़ी, बरोठा भी कहते हैं। वास्तु शास्त्र में इसका बहुत महत्व है। आओ जानते हैं इसके बारे में 5 खास बातें और पांच लाभ।
वास्तु उपाय :-
1. वास्तु के अनुसार दहलीज़ टूटी-फूटी या खंडित नहीं होना चाहिए।
2. बेतरतीब तरह से बनी दहलीज नहीं होना चाहिए यह भी वास्तुदोष निर्मित करती है।
3. द्वार की देहली (डेली) बहुत ही मजबूत और सुंदर होना चाहिए।
4. कई जगह दहलीज होती ही नहीं जो कि वास्तुदोष माना जाता है। कोई भी व्यक्ति हमारे घर में प्रवेश करे तो दहलीज लांघकर ही आ पाए। सीधे घर में प्रवेश न करें।
धन लाभ :-
1. घर को साफ और स्वच्छ कर प्रतिदिन देहरी पूजा करें। जो नित्य देहरी की पूजा करते हैं उनके घर में स्थायी लक्ष्मी निवास करती है।
2. दीपावली के अलावा विशेष अवसरों पर देहरी के आसपास घी का दीपक लगाना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी का प्रवेश सरल होगा।
3. विशेष मौके पर घर के बाहर देली (देहली या डेल) के आसपास स्वस्तिक बनाएं और कुमकुम-हल्दी डालकर उसकी दीपक से आरती उतारें।
4. भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें। देहली (डेली) के दोनों ओर सातिया बनाकर उसकी पूजा करें। सातिये के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।
निषेध :
1. दहलीज पर पैर रखकर कभी खड़े नहीं होते।
2. दहलीज पर कभी पैर नहीं पटकते।
3. अपने गंदे पैर या चप्पल को रगड़कर साफ नहीं करते।
4. दहलीज पर खड़े रहकर कभी किसी के चरण नहीं छूते।
5. मेहमान का स्वागत या विदाई दहलीज पर खड़े रहकर नहीं करते। स्वागत दहजलीज के अंदर से और विदाई दहलीज के बाहर खड़े रहकर करते हैं।