सभी विपत्तियों का नाश करेगा शनिवार का ये उपाय

Update: 2023-09-09 05:38 GMT
आज शनिवार का दिन है जो कि सूर्य पुत्र भगवान श्री शनि महाराज को समर्पित होता हैं। शनिदेव को कर्मों का दाता माना गया है ये जातक को उसके कर्मों के अनुरूप फल प्रदान करते हैं। अच्छा कर्म करने वालों को सुख समृद्धि देते हैं तो वही बुरे कर्म करने वाले लोगों को शनि दंड भी देते हैं।
 मान्यता है कि सप्ताह में शनिवार के दिन शनि पूजा आराधना और व्रत करने से प्रभु की कृपा प्राप्त होती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर आप विपत्तियों से घिरे हुए है और इससे मुक्ति का मार्ग खोज रहे हैं तो ऐसे में आप हर शनिवार के दिन दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ सच्चे मन से करें। इस चमत्कारी पाठ को करने से सभी प्रकार की विपत्तियों का नाश हो जाता है और सुख समृद्धि आती हैं, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शनि स्तोत्र पाठ।

  शनि स्तोत्र ,Shani Stotra,

दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।
सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।
एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।
पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥
दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
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नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥
दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।
अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥
 
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