गणपति का ये स्तोत्र संकटों से मुक्ति दिलाने वाला है, जानें इसके फायदे

गणेश चतुर्थी के साथ गणपति महोत्सव का आगाज हो चुका है. ये महोत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलेगा. इस दौरान घर पर आए गणपति से आप अपने संकटों को दूर करने के लिए विशेष प्रार्थना करें. मान्यता है कि संकटनाशन गणेश स्तोत्र के पाठ से बड़े से बड़े संकट दूर हो जाते हैं.

Update: 2021-09-11 02:23 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रथम पूज्य गणपति की विशेष पूजा के उत्सव का आगाज गणेश चतुर्थी के साथ हो चुका है. ये उत्सव 19 सितंबर रविवार को अनंत चतुर्दशी तक चलेगा. हर साल गणपति के जन्मोत्सव के तौर पर इसे मनाया जाता है. चतुर्थी के दिन भगवान गणपति की प्रतिमा को लोग धूमधाम से अपने घर लेकर आते हैं और उनकी स्थापना करते हैं.

गणपति को घर में 5, 7 या 9 दिनों तक घर में बैठाने के बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है. कहा जाता है कि इस दौरान गणेश भगवान की सच्चे दिल से आराधना करो तो वो सारे संकटों को हरकर अपने साथ ले जाते हैं. अगर आपके जीवन में भी कोई बड़ा संकट है, आपके काम में बड़े विघ्न आ रहे हैं, तो गणेश चतुर्थी के दिन संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ जरूर करें. यहां जानिए इसके पाठ के लाभ और संकटनाशन गणेश स्तोत्र.
सिद्ध स्तोत्र है संकटनाशन गणेश स्तोत्र
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो गणपति का ये स्तोत्र बहुत सिद्ध स्तोत्र है. चूंकि गणेश उत्सव गणपति की खास पूजन के दिन होते हैं. ऐसे में इस स्तोत्र का पाठ शुरू करना बेहद पुण्यदायी हो सकता है. आप गणेश उत्सव के दिनों से इसकी शुरुआत करके लगातार 40 दिनों तक इसका पाठ पूरी श्रद्धा के साथ करें, तो बड़े से बड़े संकट भी टल जाते हैं. पूजन के समय भगवान के समक्ष दूर्वा जरूर समर्पित करें. लेकिन हमेशा ध्यान रखें कि किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए मन में श्रद्धा का होना बहुत जरूरी है. श्रद्धा के बगैर कुछ नहीं हो सकता. अगर आप इसका पाठ प्रतिदिन करेंगे तो आपको इसके लाभ और ज्यादा मिलेंगे क्यों​कि गणपति सुखकर्ता और दुखहर्ता हैं. उनका नियमित विधि विधान से पूजन करने पर वो सारे कष्ट हर लेते हैं और व्यक्ति का जीवन सुखमय बनाते हैं.
ये है संकटनाशन गणेश स्तोत्र
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम्,
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये.
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम्,
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम्.
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च,
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम्.
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम्,
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन्.
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः,
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो.
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्,
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम्.
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते,
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः.
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते,
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः.


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