इस दिन है भीष्म पंचक व्रत, पापों का नाश और अक्षय फल प्रदान करता है ये उपवास
महाभारत काल के पितामह भीष्म के नाम पर मनाए जाने वाला पर्व भीष्म पंचक कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को पूर्ण होता है. योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर्व की स्थापना की थी. यह सर्व पाप नाशक तथा अक्षय फलदायक व्रत है. इस बार यह 4 नवंबर 2022 को पड़ेगा.
व्रत कथा
महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा शरशैया पर लेटकर कर रहे थे, तभी भगवान श्रीकृष्ण को लेकर पांचों पांडव उनके पास पहुंचे. उपयुक्त अवसर जान धर्मराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने की प्रार्थना की. युधिष्ठिर के आग्रह पर पितामह ने पांच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म पर महत्वपूर्ण उपदेश दिए. इस पर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि पितामह ने कार्तिक शुक्ल एकादशी से शुरू कर पूर्णिमा तक जो धर्ममय उपदेश दिया है, वह लोक कल्याणकारी है. उन्होंने इसकी स्मृति में भीष्म पंचक व्रत की स्थापना करने की घोषणा करते हुए कहा कि जो लोग इसका पालन करेंगे, वह संसार में कई प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाएंगे. उन्हें पुत्र, पौत्र, धन और धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी और संसार में सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त होंगे.
व्रत की विधि
कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन स्नान करने के बाद घर के आंगन या नदी के तट पर चार दरवाजों वाला मंडप बनाकर उसे गोबर से लीप देना चाहिए. बाद में वहां वेदी बनाकर तिल भरकर कलश की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र से भगवान वासुदेव की पूजा करनी चाहिए. पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलाकर और मौन होकर मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके बाद ॐ विष्णवे नमः स्वाहा मंत्र से घी, तिल और जौ की 108 आहुतियां देकर हवन संपन्न करना चाहिए. पांचों दिन काम, क्रोधाग्नि का त्याग कर ब्रह्मचर्य, क्षमा, दया और उदारता धारण करनी चाहिए. देश में अधिकांश महिलाएं एकादशी व द्वादशी को निराहार, त्रयोदशी को शाकाहार, चतुर्दशी और पूर्णिमा को फिर से निराहार रहकर प्रतिपदा को प्रातः काल ब्राह्मण दंपती को भोजन कराने के बाद खुद भी भोजन ग्रहण करती हैं.