रामचरितमानस में कई ऐसी बातें हैं, जो जीवन में मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं,जानिए विशेष मार्गदर्शन श्रीरामचरितमास की उपर्युक्त पंक्तियो से

रामचरितमानस में कई ऐसी बातें हैं, जो जीवन में मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं।

Update: 2020-10-26 13:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | रामचरितमानस में कई ऐसी बातें हैं, जो जीवन में मनुष्य का मार्गदर्शन करते हैं। उसके अंदर कई अच्छे गुणों का विकास करते हैं, साथ ही संकट, दुख और शोक के समय में इंसान को नैतिक और महत्वपूर्ण बातों को बताते हैं। अक्सर देखा गया है कि लोग अपने प्रियजनों, रिश्तेदारों, मित्रों आदि के निधन पर शोक मनाते हैं और दुखी होते हैं। यह मनुष्य का स्वभाव भी है। रामचरितमानस में बताया गया है ​कि किस प्रकार के लोगों के निधन पर शोक मनाना चाहिए। आज रामायण के उस प्रसंग के बारे में बता रहे हैं जब श्रीराम को वनवास का आदेश देने के बाद राजा दशरथ स्वर्ग सिधार जाते हैं और भरत जी को यह सूचना दी जाती है।

सब बिधि सोचिअ पर अपकारी।

निज तनु पोषक निरदय भारी।।

सोचनीय सबहीं बिधि सोई।

जो न छाडि़ छलु हरि जन होई।।

श्रीरामचरितमास की उपर्युक्त पंक्तियां उस समय की हैं, जब भगवान राम के वन गमन के पश्चात गुरु वशिष्ठ दूतों के द्वारा श्री भरत को ननिहाल से बुलवाते हैं। श्री भरत के लौट आने पर महाराज श्री दशरथ की मृत्यु की सारी गाथा से व्याकुल श्री भरत को गुरुदेव बहुत प्रकार से समझाते हैं। वे कहते हैं कि किन लोगों के लिए मृत्यु के पश्चात शोक करना चाहिए और किन लोगों के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।

महाराज श्री दशरथ की धन्यता का विस्तार से बखान करते हुए वह कहते हैं, भरत! शोक तो उसके लिए किया जाए, जो अपने शरीर का तो भरण-पोषण करे, पर दूसरों का अनिष्ट करे, और जरा भी दया भाव न रखे। शोक उसके लिए भी करना चाहिए, जो छल छोड़कर भगवान की भक्ति न करे।

तुम्हारे पिता तो भगवान शंकर के महान भक्त और हर तरह से प्रजा का हित करने वाले थे। कदाचित वे इतने निश्छल थे कि उन्हें धर्म की दुहाई देकर छला गया है। यदि उनमें तनिक भी कपट या छल होता तो वे राम को वन भेजकर अपने प्रति इतना अन्याय न करते, जिसके कारण उन्होंने शरीर ही छोड़ दिया।

चौदह भुवनों और तीनों कालों (भूत-वर्तमान और भविष्य)में ऐसा निश्छल राजा न तो हुआ, न है और न ही होगा। भरत! वे धन्य थे, जिनके पुत्र राम, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और तुम भरत हो!


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