शिव जी के जटा रूप की पूजा कल्पेश्वर महादेव में होती है
पंचकेदार में पांचवां केदार- कल्पेश्वर। उर्गम घाटी में स्थित।।।।।
History of Kalpeshwar temple: यह भी है कि दुर्वासा ऋषि ने यहां स्थित कल्पवृक्ष के नीचे भगवान शिव की तपस्या की थी, जिस कारण इसे कल्पेश्वर नाम दिया गया है। कल्पेश्वर को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां हर वर्ष शिवरात्रि को विशेष मेला भी लगता है। मंदिर में भगवान शिव के जटा रूप की पूजा की जाती है। एक विशालकाय चट्टान के नीचे छोटी-सी गुफा में स्थित मंदिर के गर्भगृह की यूं तो फोटो खींचना मना है लेकिन नेत्ररूपी कैमरे से देखने पर उस जगह की दिव्यता व भव्यता का एहसास होता है।
History of Kalpeshwar temple: यह भी है कि दुर्वासा ऋषि ने यहां स्थित कल्पवृक्ष के नीचे भगवान शिव की तपस्या की थी, जिस कारण इसे कल्पेश्वर नाम दिया गया है। कल्पेश्वर को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है। यहां हर वर्ष शिवरात्रि को विशेष मेला भी लगता है। मंदिर में भगवान शिव के जटा रूप की पूजा की जाती है। एक विशालकाय चट्टान के नीचे छोटी-सी गुफा में स्थित मंदिर के गर्भगृह की यूं तो फोटो खींचना मना है लेकिन नेत्ररूपी कैमरे से देखने पर उस जगह की दिव्यता व भव्यता का एहसास होता है।
हेलंग से ट्रैकर बुक कर भी कल्पेश्वर तक पहुंचा जा सकता है। पंचकेदार में कल्पेश्वर अकेला केदार है जिस तक मोटरमार्ग द्वारा पहुंचना संभव है। प्रकृति की गोद में स्थित इस मंदिर के पास पहुंचते ही एक विशाल झरना श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। दूर से देखने पर लगता है मानो झरने के नीचे शिवलिंग हो और जल रूपी दूध से उसका अभिषेक किया जा रहा हो। मंदिर के ठीक सामने से कल्पगंगा नदी बहती है, जिसे हिरणावती भी कहा जाता है। नदी के ठीक ऊपर झूला पुल मंदिर हेतु प्रवेश द्वार का काम करता है। पूरी तरह से शांत उर्गम घाटी में पहाड़ से गिरता झरना और पुल के नीचे बहती कल्पगंगा नदी एक ऐसा जल-संगीत बिखेरे रहती हैं, मानो श्रद्धालुओं से कह रही हों कि इस जगह की शांति को बनाए रखें और केवल प्रकृति के संगीत को सुनें।