ब्रम्‍हाण्‍ड के पहले पत्रकार नारद मुनि की जयंती 17 मई को मनाई जाएगी, जानें इनके जन्‍म की रोचक कहानी

हाथों में वीणा लिए जब कोई नारायण-नारायण के शब्द निकालता है तो तुरंत ही देवर्षि नारद की छवि लोगों के मन में उभर आती है.

Update: 2022-05-15 03:20 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाथों में वीणा लिए जब कोई नारायण-नारायण के शब्द निकालता है तो तुरंत ही देवर्षि नारद की छवि लोगों के मन में उभर आती है. वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए एक लोक के समाचार दूसरे लोक में पहुंचाते थे, इसीलिए नारद जी को आदि पत्रकार भी कहा जाता है. प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है, वर्ष 2022 में नारद जयंती 17 मई को पड़ रही है.

ब्रह्मा जी ने ही अपने पुत्र नारद को दिया था शाप
पूरे संसार में दुखियों की चिंता कर उन्हें भक्तिमार्ग बताने वाले आदि पत्रकार नारद जी प्रजापति ब्रह्मा जी की गोद से उत्पन्न होने के कारण यूं तो उनके मानस पुत्र कहलाते हैं किंतु उनके जन्म की कथा बहुत ही रोचक है. ब्रह्मा जी ने नारद जी को सृष्टि विस्तार की आज्ञा दी तो नारद जी ने आज्ञा मानने से इनकार करते हुए साफ कहा, 'अमृत से भी अधिक प्रिय श्री कृष्ण की सेवा छोड़ कर कौन मूर्ख विषय रूपी विष का पान करेगा'. बस इतना सुनते ही ब्रह्मा जी रोष से आग बबूला हो गए और नारद जी को श्राप दे दिया. उन्‍होंने श्राप दिया, 'तुम्हारे ज्ञान का लोप हो जाएगा.' इसी के प्रभाव से नारद जी पहले उपबर्हण नाम के गंधर्व हुए और चित्ररथ गंधर्व की 50 पुत्रियों ने उन्हें पति के रूप में वर्णन किया. रंभा अप्सरा का नृत्य देख काममोहित होने पर ब्रह्मा जी ने उन्‍हें शूद्र योनि में जाने का श्राप दे दिया.
दासी पुत्र के रूप में लेना पड़ा जन्म
उपबर्हण ने तुरंत योग क्रिया से शरीर को छोड़ दिया और बाद में द्रुमिल गोप की पत्नी कलावती के पुत्र के रूप में जन्म लेकर दासी पुत्र बने. दासी पुत्र के रूप में चातुर्मास में साधुओं की सेवा करने पर संतों ने उन्हें भगवान के रूप ध्यान और नाम जप का उपदेश दिया. इसी बीच उनकी मां की मृत्यु हो गई तो वे जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने लगे. तभी प्रभु उनके हृदय में प्रकट हुए किंतु वह झांकी बिजली की गति से गायब हो गई. दर्शन के लिए व्याकुल होने पर आकाशवाणी हुई कि अब तुम मेरे दर्शन अगले जन्म में ही कर सकोगे. इसके बाद आयु पूरी होने पर उस दासी पुत्र की मृत्यु हो गई और फिर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र के रूप में जन्म हुआ, तब से वे वीणा बजा कर प्रभु का गुणगान कर रहे हैं, वे जब सच्चे मन से प्रभु को पुकारते हैं तो चित्त में तुरंत ही भगवान प्रकट हो जाते हैं.
संगीत और भक्ति के आचार्य हैं देवर्षि नारद
नारद जी देवर्षि हैं, वे वेदान्त, योग, ज्योतिष, वैद्यक, संगीत और भक्ति के मुख्य आचार्य हैं. पृथ्वी पर भक्ति का प्रचार करने का श्रेय उन्हीं को है. भक्ति देवी तथा ज्ञान वैराग्य का कष्ट दूर करते हुए वृंदावन में उन्होंने प्रतिज्ञा की, 'हे भक्तिदेवी! कलियुग के समान दूसरा युग नहीं है, अत कलियुग में भक्ति विषयक महोत्सवों को आगे करके जन-जन तक आपकी स्थापना न करूं तो मैं हरिदास न कहलाऊं.'
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