श्रीकृष्ण की कर्मस्थली की ओर रवानगी लें, यहां आपको कई धार्मिक , आध्यात्मिक महत्व की जगह देखने को मिलेगी इस लेख के जरिए करिए कुरुक्षेत्र की सैर
लाइफस्टाइल: कुरुक्षेत्र कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध की स्थली है। यह वही भूमि है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कुरुक्षेत्र अपनी महान सांस्कृतिक विरासत के लिए भारत में जाना जाता है। कुरुक्षेत्र हरियाणा के उत्तर में स्थित एक जिला है। कुरुक्षेत्र की तरह ही हरियाणा में कई स्थल हैं, जो वैदिक संस्कृति से जुड़े हैं, इसमें गुरुग्राम का नाम भी शामिल है। गीता उपदेश स्थली कुरुक्षेत्र को वास्तविक तौर पर श्रीकृष्ण की कर्मस्थली भी कह सकते हैं। हालांकि कुरुक्षेत्र कृष्ण की जन्मस्थली गोकुल, मथुरा और वृंदावन के जितना प्रसिद्धी नहीं पा सका। यात्रा पर जाने की योजना है इस बार श्रीकृष्ण की कर्मस्थली की ओर रवानगी लें, यहां आपको कई धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की जगह देखने को मिल सकती हैं। इस लेख के जरिए करिए कुरुक्षेत्र की सैर। दिल्ली से कुरुक्षेत्र की दूरी लगभग 154 किलोमीटर है, जिसका सफर तय करने में करीब 3 घंटे का समय लगता है। ट्रेन के अलावा सड़क मार्ग के जरिए भी आसानी से कुरुक्षेत्र पहुंच सकते हैं। जीटी रोड़ से होते हुए रवाना हों, रास्ते में मुरथल आएगा, जहां आप लजीज परांठों का स्वाद ले सकते हैं। यहां से कुछ घंटे की दूरी पर कुरुक्षेत्र है।
ब्रह्मांड निर्माता ब्रह्मा जी से जुड़ा ये सरोवर शहर के बीचोंबीच है। शाम के समय ब्रह्म सरोवर पर आरती होती है। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यह जगह आध्यात्मिक अनुभव कराती है। सरोवर के पास ही एक मिनी कुंभ है, जहां लाखों लोग खास मौकों पर डुबकी लगाने के लिए पहुंचते हैं। कुरुक्षेत्र की 48 कोस भूमि का महत्ता का वर्णन शास्त्रों में है। सरस्वती और द्रिशावती नदियों के आसपास के क्षेत्र को 48 कोस कहा जाता है। इसमें 164 से अधिक तीर्थ स्थल आते हैं, जिन्हें घूमने में कई दिन लग सकते हैं। कुरुक्षेत्र के पीपली से शुरू होकर कैथल से होते हुए जींद, पानीपत और करनाल 48 कोस भूमि में आते हैं। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में योद्धा लड़ते-लड़ते जिस भूमि तक पहुंच गए थे, वह 48 कोस की भूमि में शामिल हो गई।
यह वही स्थान है, जहां कौरव-पांडव की सेनाएं एक दूसरे के सामने खड़ी थीं और श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। यहां श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप की 52 फुट ऊंची कांस्य मूर्ति लगाई गई है। देवी के प्रसिद्ध 52 शक्तिपीठों में से एक भद्रकाली मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता सती के घुटने से नीचे का भाग यहां कूप में गिरा था। पांडवों ने भगवान कृष्ण के साथ इस मंदिर में पूजा की थी और यहां अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया था।