सोम प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूर्ण व्रत पूजा विधि
हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में दोनों पक्षों। कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत पड़ता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास में दोनों पक्षों। कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत पड़ता है। इस दिन सूर्यास्त से पौने घंटे पहले पूजन आरंभ किया जाता है। प्रदोष काल में पूजन का विधान होने के कारण ही यह प्रदोष व्रत कहलाता है। प्रदोष व्रत का फल और नाम वार (सप्ताह का दिन) के अनुसार होता है। इस बार आश्विन मास का प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ रहा है, इसलिए यह सोम प्रदोष व्रत कहलाएगा। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है, अतः सोम प्रदोष व्रत बेहद शुभ माना जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का पूजन करने के साथ ही माता पार्वती की पूजा भी की जाती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जानते हैं प्रदोष व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और संपूर्ण पूजन विधि।
सोम प्रदोष व्रत का महत्व-
सोम प्रदोष का व्रत करने से भक्तों को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उसके जीवन के सभी कष्ट मिट जाते हैं। शिव जी अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। सौभाग्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। सोमवार का दिन चंद्र ग्रह का माना गया है इस दिन शिवलिंग का पूजन करने से चंद्र ग्रह से संबंधित दोष भी समाप्त हो जाते हैं।
प्रदोष व्रत 2021 तिथि और शुभ मुहूर्त
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का प्रदोष व्रत 04 अक्टूबर 2021 दिन सोमवार को रखा जाएगा।
अश्विन मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ- 03 अक्टूबर दिन रविवार को रात 10 बजकर 29 मिनट से
अश्विन मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि समाप्त- 04 अक्टूबर दिन सोमवार को रात 09 बजकर 05 मिनट पर
सोम प्रदोष पूजा मुहूर्त- 04 अक्टूबर शाम को 06 बजकर 04 मिनट से रात 08 बजकर 30 मिनट तक।
सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि-
प्रातः उठकर स्नानादि करने के बाद शिव जी के सामने दीपक प्रज्वलित कर प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
संध्या समय शुभ मुहूर्त में पूजन आरंभ करें।
गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करें।
अब शिवलिंग पर श्वेत चंदन लगाकर बेलपत्र, मदार पुष्प, भांग, आदि से विधिपूर्वक पूजन करें।
शिव जी के साथ माता पार्वती का पूजन करें और शिव जी की आरती करें।
पूजा के स्थान पर ही आसन पर बैठकर मंत्र जाप या शिव चालीसा का पाठ करें।