स्कंद षष्ठी व्रत आज, इस विधि से करें भगवान कार्तिकेय की पूजा, मुरादें होंगी पूरी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से जीवन में हर तरह की बाधाएं दूर होती हैं

Update: 2021-09-12 03:48 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्कंद षष्ठी व्रत हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन रखा जाता है और आज यानि 12 सितंबर रविवार को भाद्रपद माह का स्कंद षष्ठी व्रत है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह व्रत भगवान कार्तिकेय के लिए रखा जाता है। आज के दिन उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है। भगवान कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं। वे षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से जीवन में हर तरह की बाधाएं दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना से ये व्रत किया जाता है।

स्कंद षष्ठी पूजा मुहूर्त 

भाद्रपद, शुक्ल षष्ठी तिथि प्रारम्भ – 11 सितंबर को शाम 07:37 बजे से

भाद्रपद, शुक्ल षष्ठी तिथि समाप्त – 12 सितंबर को शाम 05:20 बजे तक

स्कंद षष्ठी व्रत विधि

सुबह जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई करें। 

इसके बाद स्नान-ध्यान कर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लें। 

पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। 

पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें। 

अंत में आरती करें। 

वहीं शाम को कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें। 

इसके पश्चात फलाहार करें।

पूजा का मंत्र 

देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव।

कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥

स्कंद षष्ठी व्रत कथा

भगवान कार्तिकेय के जन्म का वर्णन हमें पुराणों में ही मिलता है। जब देवलोक में असुरों ने आतंक मचाया हुआ था, तब देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा था। लगातार राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखते हुए देवताओं ने भगवान ब्रह्मा से मदद मांगी थी। भगवान ब्रह्मा ने बताया कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही इन असुरों का नाश होगा, परंतु उस काल च्रक्र में माता सती के वियोग में भगवान शिव समाधि में लीन थे। 

इंद्र और सभी देवताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए भगवान कामदेव की मदद ली और कामदेव ने भस्म होकर भगवान भोलेनाथ की तपस्या को भंग किया। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया और दोनों देवदारु वन में एकांतवास के लिए चले गए। उस वक्त भगवान शिव और माता पार्वती एक गुफा में निवास कर रहे थे। 

उस वक्त एक कबूतर गुफा में चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ। यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म हुआ।

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