ऋषि-मुनी की हड्डी से बनी बांसुरी बजाते थे श्रीकृष्ण, जानिए

Update: 2023-09-01 16:10 GMT
धर्म अध्यात्म: भगवान श्रीकृष्ण को सब बांसुरीवाला कहते हैं, लेकिन क्या आपने सोचा है सबसे पहले ये नाम उन्हें कैसे मिला. अगर हम आपसे ये कहें कि कृष्णा जी जो बांसुरी बजाते हैं वो लकड़ी या किसी धातु की नहीं बल्कि हड्डी से बनीं थी तो शायद आप ये जानकर हैरान रह जाएं. द्वापर युग में विष्णु जी का आठवां अवतार लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. उनसे अवतार बदलकर सब देवी-देवता, सुर, ऋषि-मुनि मिलने आए और उन्हें कुछ-कुछ उपहार भी भेंट किए. ये देखकर भगवान शिव सोचने लगे कि वो क्या भेंट करें. तब उन्होंने बांसुरी के बारे में सोचा. लेकिन इस बांसुरी को उन्होंने कैसे तैयार किया इसकी पौराणिक कथा भी काफी दिलचस्प है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव के मन में कृष्णा से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई तब उन्होंने धरती पर आने का सोचा, लेकिन वो कृष्णा से जब मिलेंगे उसे क्या उपहार देंगे ये भी उनके लिए एक चुनौती थी. क्योंकि बालरूप में कृष्णा भले ही सबके लिए छोटे बालक ही हों लेकिन उनकी शक्तियों के बारे में तो भगवान शिव सब जानते ही थे. ऐसे में उन्होंने ऋषि दधीचि की हड्डी के बारे में सोचा.
दरअसल ये कहानी बहुत की रोचक है प्राचीन काल में राक्षस और असुरों के संहार करने के लिए ऋषि दधीचि ने अपनी आत्मा का त्याग कर दिया था और अपने वज्र की हड्डियां कुछ देवताओं को उन्होंने दान स्वरूप भेंट की थी. कहते हैं ऋषि विश्वकर्मा ने उन्हीं हड्डियों से कुछ हथियार बनाये थे, और भगवान कृष्ण ने उसे संभालकर रखा था और कृष्ण के जन्मोपरांत उसकी बांसुरी स्वयं बनाकर कृष्णा को उन्होंने भेंट की थी.
कहते हैं भगवान शिव ने जब ऋषि की हड्डी को तराशा तब उससे एक बहुत ही सुंदर बांसुरी तैयार हुई थी. इसी बांसुरी को भगवान श्रीकृष्ण ने जीवनभर संभालकर रखा और समय-समय पर इसे बजाकर संसार को तनाव मुक्त किया और कई तरह के संदेश भी दिए.
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