Shivnamaavalya Ashtakam : शिव पूजा के दौरान करें ये काम, बनेंगे बिगड़े काम

Update: 2024-07-01 11:47 GMT
Shivnamaavalya Ashtakam ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू धर्म में सोमवार का दिन शिव पूजा को समर्पित किया गया है इस दिन भक्त भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है और कष्ट दूर हो जाते हैं
लेकिन इसी के साथ ही अगर सोमवार के दिन शिव पूजा के समय शिवनामावल्य अष्टकम् का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो भगवान खुश हो जाते हैं और अपने भक्तों के सारे काम बना देते हैं साथ ही बाधाओं को दूर कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
शिवनामावल्य अष्टकम्
हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे,
स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शंभो।
भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
हे पार्वतीहृदयवल्लभ चन्द्रमौले,
भूताधिप प्रमथनाथ गिरीशचाप ।
हे वामदेव भव रुद्र पिनाकपाणे,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
हे नीलकण्ठ वृषभध्वज पञ्चवक्त्र,
लोकेश शेषवलय प्रमथेश शर्व॥
हे धूर्जटे पशुपते गिरिजापते मां,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
हे विश्वनाथ शिव शंकर देवदेव,
गङ्गाधर प्रमथनायक नन्दिकेश॥
बाणेश्वरान्धकरिपो हर लोकनाथ,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
वाराणसीपुरपते मणिकर्णिकेश,
वीरेश दक्षमखकाल विभो गणेश॥
सर्वज्ञ सर्वहृदयैकनिवास नाथ,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
श्रीमन्महेश्वर कृपामय हे दयालो,
हे व्योमकेश शितिकण्ठ गणाधिनाथ।
भस्माङ्गराग नृकपालकलापमाल,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
कैलासशैलविनिवास वृषाकपे हे,
मृत्युंजय त्रीनयन त्रिजगन्निवास॥
नारायणप्रिय मदापह शक्तिनाथ,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
विश्वेश विश्वभवनाशक विश्वरूप,
विश्वात्मक त्रिभुवनैकगुणाधिकेश॥
हे विश्वनाथ करुणामय दीनबन्धो,
संसारदुःखगहनाज्जगदीश रक्ष॥
गौरीविलासभवनाय महेश्वराय,
पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय॥
शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै,
दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय॥
शिवाष्टकम्
जय शङ्कर शान्त शशाङ्करुचे रुचितार्थद सर्वद सर्वरुचे ।
शुचिदत्तगृहीतमहोपहृते हृतभक्तजनोद्धततापतते ॥
ततसर्वहृदम्बरवरदनुते नतवृजिनमहावनदाहकृते ।
कृतविविधचरित्रतनो सुतनो तनु विशिखविशोषणधैर्यनिधे ॥
निधनादिविवर्जितकृतनतिकृत्कृतविहितमनोरथपन्नगभृत् ।
निधनादिविवर्जितकृतनतिकृत्कृतविहितमनोरथपन्नगभृत् ।
नगभर्तृसुतार्पितवामवपुः स्ववपुःपरिपूरितसर्वजगत् ॥
त्रिजगन्मयरूप विरूपसुदृगृगुदञ्चनकिञ्चनकृद्धुतभुक् ।
भवभूतपते प्रमथैकपते पतितेष्वतिदत्तकरप्रसृते ॥
प्रसृताखिलभूतलसंवरणप्रणवध्वनिसौधसुधांशुधर ।
गिरिराजकुमारिकया परया परितः परितुष्ट नतोऽस्मि शिव ॥
शिव देव महेश गिरीश विभो विभवप्रद शर्व शिवेश मृड ।
मृडयोडुपतीध्रजगत्त्रितयं कृतयन्त्रण भक्तिविघातकृताम् ॥
न कृतान्तत एष बिभेमि हर प्रहराशु ममाघममोघमते ।
न मतान्तरमन्यमवैमि शिवं शिवपादनतेः प्रणतोऽस्मि ततः॥
विततेऽत्र जगत्यखिलाघहरं परितोषणमेव परं गुणवत् ।
गुणहीनमहीनमहावलयं लयपावकमीश नतोऽस्मि ततः॥
इति स्तुत्वा महादेवं विररामाङ्गिरःसुतः ।
व्यतरच्च महादेवः स्तुत्या तुष्टो वरान् बहून्॥
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