Sawan Shivratri: इस आरती और मंत्र से भगवान शिव होंगे प्रसन्न

Update: 2024-08-02 08:17 GMT
Sawan Shivratri ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना अलग महत्व होता है लेकिन सावन शिवरात्रि को बेहद ही खास माना जाता है जो कि महादेव की साधना आराधना का दिन होता है इस दिन भक्त प्रभु की भक्ति में लीन रहते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से शिव शम्भू की कृपा बरसती है पंचांग के अनुसार सावन माह की शिवरात्रि 2 अगस्त दिन शुक्रवार यानी की आज देशभर में
धूमधाम के साथ मनाई जा रही है
 इस दिन भक्त शिव मंदिरों में जाकर भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा अर्चना करते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं। इस साल सावन की शिवरात्रि पर कई दुर्लभ योगों का संयोग बन रहा है जो कि अपने आप में बेहद ही खास है। सावन शिवरात्रि पर महादेव की पूजा के लिए कुल 42 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है जो कि अति उत्तम माना जा रहा है, ऐसे में अगर आप भी महादेव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं पूजा पाठ के बाद भगवान शिव की प्रिय आरती और मंत्र का जाप जरूर करें माना जाता है कि ऐसा करने से शिव शीघ्र प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और संकट दूर कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शिव आरती और मंत्र।
 भगवान शिव के प्रभावशाली मंत्र
ओम साधो जातये नम:।। ओम वाम देवाय नम:।।
ओम अघोराय नम:।। ओम तत्पुरूषाय नम:।।
ओम ईशानाय नम:।। ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।।
 शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
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