Sawan 2021: जानिए सबसे पहले किसने किया था शिवलिंग का महाभिषेक?
भगवान शिव को सबसे प्रिय है जलाभिषेक।
भगवान शिव को सबसे प्रिय है जलाभिषेक। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भोलेबाबा को जल चढ़ाता है और गंगाजल से उनका अभिषेक करता है, भगवान इतने में ही प्रसन्न होकर उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग का जलाभिषेक सबसे पहले किसने किया था और कैसे शुरू हुई थी यह परंपरा ? आज हम आपको बताने जा रहे हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा?
सहस्त्रबाहु की दावत
एक बार परशुरामजी के पिता ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु का बहुत ही अच्छी तरह से आदर सत्कार किया और उनकी सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं आने दी। सहस्त्रबाहु ऋषि के आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न थे, परन्तु उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी की आखिर एक साधारण एवम गरीब ऋषि उनके और उसकी सेना के लिए इतना सारा खाना कैसे जुटा पाए?
कामधेनु गाय का चमत्कार
सहस्त्रबाहु को अपने सैनिकों से यह पता लगा कि ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है, जिससे कुछ भी मांगों वह सब कुछ प्रदान करती है। जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि इसी कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाए तो उस गाय को प्राप्त करने के लिए सहस्त्रबाहु के मन में लालच उत्पन्न हो गया।
जमदग्नि की हत्या
उसने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी परन्तु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय को देने से मना कर दिया। इस पर सहस्त्रबाहु अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने कामधेनु गाय को प्राप्त करने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
परशुरामजी को आया गुस्सा
जब यह खबर परशुराम को पता लगी कि सहस्त्रबाहु ने उनके पिता की हत्या कर दी है तथा वह कामधेनु गाय को अपने साथ ले गया है तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काटकर उसकी हत्या कर डाली। बाद में परशुराम ने अपनी तपस्या के प्रभाव से अपने पिता जमदग्नि को पुनः जीवित कर लिया। जब ऋषि को यह बात पता चला कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुरामजी से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा।
इस तरह आरंभ किया जलाभिषेक
तब परशुरामजी अपने पिता की आज्ञा से अनेकों मील दूर जाकर गंगाजल लेकर आए तथा आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना कर शिव का महाभिषेक किया और उनकी स्तुति की। जिस क्षेत्र में परशुराम ने शिवलिंग स्थापित किया था उस क्षेत्र का प्रमाण आज भी मौजूद है। वह क्षेत्र उत्तर प्रदेश में आता है तथा पूरा महादेव के नाम से प्रसिद्ध है।