sakat chauth 2021: 31 जनवरी को है सकट चौथ, जानिए महत्व,व्रत और पौराणिक कथा

हर माह संकष्टी चतुर्थी पड़ती है परंतु माघ माह में आने वाली चौथ का हिंदू धर्म में खास महत्व माना गया है।

Update: 2021-01-23 03:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: हर माह संकष्टी चतुर्थी पड़ती है परंतु माघ माह में आने वाली चौथ का हिंदू धर्म में खास महत्व माना गया है। इस बार सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी 2021 को पड़ रहा है। इस दिन विघ्न हर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। कुछ स्थानों पर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा भी है। सकट चौथ पर तिल के लड्डू, तिलकुटा आदि बनाया जाता है। यह व्रत माताएं संतान अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ आदि कई नामों से जाना जाता है। जिस प्रकार से हर व्रत या पर्व के पीछे कोई न कोई कारण या फिर कथा अवश्य होती है, इसी प्रकार से सकट चौथ के पीछे भी पौराणिक कथा प्रचलित है। तो चलिए जानते हैं सकट चौथ की कथा...

सकट चौथ की कथा
कथा के अनुसार भगवान शिव के बहुत सारे गण थे, वे माता पार्वती का आदेश भी मानते थे परंतु भगवान शिव का आदेश उनके गणों के लिए सर्वोपरि था। एक बार मां पार्वती ने सोचा की कोई ऐसा होना चाहिए, जो केवल उनके आदेश का पालन करे। तभी माता पार्वती ने अपने उवटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। यह बालक माता पार्वती पुत्र गणेश कहलाए। इस सब के विषय में भगवान शिव को ज्ञात नहीं था। जब माता स्नान के लिए गईं तो उन्होंने द्वार बालक गणेश को खड़ा कर दिया और कहा कि जब तक वे न कहें किसी को अंदर नहीं आने दें।
तभी भगवान शिव के गण वहां आए लेकिन बालक गणेश ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। जिसके बाद उनके बीच द्वंद हुआ। गणेश जी ने सभी को परास्त कर वहां से भगा दिया। जिसके बाद भगवान शिव वहां पहुंचे, बालक ने उन्हें भी प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया, जिसके कारण शिव जी को क्रोध आ गया। क्रोधवश होकर उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर आई और उन्होंने यह सब देखा तो अपने पुत्र की दशा देखकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। वे दुख और क्रोध में आकर भगवान शिव से बालक गणेश को जीवन दान देने को कहने लगी। यह सब ज्ञात होने को बाद भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर जीवित किया। जिससे वे गजानन कहलाए। सभी 33 कोटि देवी-देवताओं ने गणेश जी को आशीर्वाद प्रदान किया। कहा जाता है कि यह सकट चौथ की तिथि थी। तब से यह तिथि पूजनीय बन गई।


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