Masik Shivaratri पर करें यह पाठ, भोलेनाथ की होगी असीम कृपा

Update: 2024-11-29 08:59 GMT
Masik Shivratri ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन मासिक शिवरात्रि को बहुत ही खास माना गया है जो कि शिव साधना आराधना को समर्पित दिन होता है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है।
 मासिक शिवरात्रि के दिन उपवास व पूजा पाठ करने से साधक के सभी दुख, कष्ट और जीवन की समस्याएं दूर हो जाती है। मार्गशीर्ष मास की मासिक शिवरात्रि आज यानी 29 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है। इस दिन पूजा पाठ के दौरान अगर श्री गंगाधर स्तोत्र का पाठ किया जाए तो जीवन के दुखों का अंत हो जाता है, और भगवान शिव की असीम कृपा भी बरसती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं यह चमत्कारी पाठ।
 गंगाधर स्तोत्र
क्षीरांभोनिधिमन्थनोद्भवविषा-त्सन्दह्यमानान् सुरान्
ब्रह्मादीनवलोक्य यः करुणया हालाहलाख्यं विषम् ।
निश्शङ्कं निजलीलया कबलयन्लोकान्ररक्षादरा-
दार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ १ ॥
क्षीरं स्वादु निपीय मातुलगृहे भुक्त्वा स्वकीयं गृहं
क्षीरालाभवशेन खिन्नमनसे घोरं तपः कुर्वते ।
कारुण्यादुपमन्यवे निरवधिं क्षीरांबुधिं दत्तवा-
नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ २ ॥
मृत्युं वक्षसि ताडयन्निजपदध्यानैकभक्तं मुनिं
मार्कण्डेयमपालयत्करुणया लिङ्गाद्विनिर्गत्य यः ।
नेत्रांभोजसमर्पणेन हरयेऽभीष्टं रथाङ्गं ददौ
आर्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ३ ॥
ओढुं द्रोणजयद्रथादिरथिकैस्सैन्यं महत्कौरवं
दृष्ट्वा कृष्णसहायवन्तमपि तं भीतं प्रपन्नार्तिहा ।
पार्थं रक्षितवानमोघविषयं दिव्यास्त्रमुद्बोधय-
न्नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ४ ॥
बालं शैवकुलोद्भवं परिहसत्स्वज्ञातिपक्षाकुलं
खिद्यन्तं तव मूर्ध्नि पुष्पनिचयं दातुं समुद्यत्करम् ।
दृष्ट्वानम्य विरिञ्चि रम्यनगरे पूजां त्वदीयां भज-
न्नार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ५ ॥
 सन्त्रस्तेषु पुरा सुरासुरभयादिन्द्रादिबृन्दारके-
ष्वारूढो धरणीरथं श्रुतिहयं कृत्वा मुरारिं शरम् ।
रक्षन्यः कृपया समस्तविबुधान् जीत्वा पुरारीन् क्षणा-
दार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ६ ॥
श्रौतस्मार्तपथो पराङ्मुखमपि प्रोद्यन्महापातकं
विश्वाधीशमपत्यमेव गतिरित्यालापवन्तं सकृत् ।
रक्षन्यः करुणापयोनिधिरिति प्राप्तप्रसिद्धिः पुरा-
ह्यार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ७ ॥
गाङ्गं वेगमवाप्य मान्यविबुधैस्सोढुं पुरा याचितो
दृष्ट्वा भक्तभगीरथेन विनतो रुद्रो जटामण्डले ।
कारुण्यादवनीतले सुरनदीमापूरयन्पावनी-
मार्तत्राणपरायणः स भगवान् गंगाधरो मे गतिः ॥ ८ ॥
इति श्रीमदप्पयदीक्षितविरचितं श्री गंगाधराष्टकम् ।
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