गुरुवार को भगवान विष्णु की आरती का करें पाठ, मनोकामनाएं होंगी सभी पूरी

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है. मान्यताओं के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है

Update: 2022-05-05 12:13 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है. मान्यताओं के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस दिन श्रीहरि की उपासना करते हुए व्रत रखने से सुख-समृद्धि, धन-वैभव की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. विष्णु जी की पूजा करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. विधि-विधान से महाविष्णु की आराधना करने से सारे कष्ट दूर होते हैं.

सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने की सलाह दी जाती है. जिसके बाद मंदिर की सफाई करनी चाहिए. पूजा स्थल पर मंत्रों के साथ गंगा जल छिड़कना चाहिए. इसके बाद स्तुति, मंत्र, चालीसा व आरती का पाठ करना चाहिए. हांलाकि, मान्यताओं के अनुसार आरती का पाठ करते समय कुछ विशेष नियमों का पालन भी करना चाहिए. आरती को ऊंचे स्वर में और साफ उच्चारण के साथ गाना चाहिए. पढ़ें, विष्णु जी की आरती (Vishnu Aarti)
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
श्रीहरि की उपासना करने से सारे कष्ट दूर होते हैं. 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥
विष्णुजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे॥


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