सनातन धर्म में हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु के साथ साईं बाबा की पूजा के लिए भी खास माना जाता हैं। इस दिन भक्त श्री साईं बाबा की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ अगर श्री साईं बाबा की आरती भी पढ़ी जाए तो बाबा शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा करते हैं और उनके सभी कष्टों को दूर कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं साईं आरती।
साईं बाबा आरती—
१। घेवुनि पञ्चारती करू बाबाञ्ची आरती
करू सायिसी आरती करू बाबान्सी आरती ॥ १ ॥
उठा उठा हो बान्धव ओवालू हरमाधव
सायीरमाधव ओवालू हरमाधव ॥ २ ॥
करूनीया स्थिरमन पाहु गंभीर हे ध्यान
सायिचे हेध्यान पाहु गंभीर हेध्यान ॥ ३ ॥
कृष्णनाधा दत्तसायि जडो चित्त तुझे पायी
चित्त बाबा पायी जडो चित्त तुझे पायी ॥ ४ ॥
२। आरति सायिबाबा सौख्य दातार जीवा ।
चरणरजतालि द्यावा दासां विसाव भक्तां विसावा ॥ आरति सायिबाबा ॥
जालूनिया आनङ्ग स्वस्वरूपी राहे दङ्ग ।
मुमुक्ष जनदावी निजडोला श्रीरङ्ग डोला श्रीरङ्ग ॥ आरति सायिबाबा ॥
जया मनी जैसा भाव तया तैसा अनुभव ।
दाविसि दया घना ऐसि तुझीही माव तुझीही माव ॥ आरति सायिबाबा ॥
तुमचे नाम ध्याता हरे संस्कृति व्यधा ।
अगाध तवकरणि मार्ग दाविसी आनाथा दाविसी आनाथा ॥ आरति सायिबाबा ॥
कलियुगि अवतार सगुण परब्रह्मा साचार ।
अवतीर्ण झालासे स्वामी दत्तदिगम्बर दत्तदिगम्बर ॥ आरति सायिबाबा ॥
आठा दिवसा गुरुवारी भक्तकरीति वारी ।
प्रभुपद महावया भवभय निवारी भय निवारी ॥ आरति सायिबाबा ॥
माझा निजद्रव्य ठेवा तव चरण रज सेवा ।
मागणे हेचि आता तुम्हा देवाधिदेवा देवाधिदेवा ॥ आरति सायिबाबा ॥
इच्छिता दीनचातक निर्मलतोय निजसूख ।
पाजवे माधवाय संभाल अपुलीबाक अपुलीबाक ॥
आरति सायिबाबा सौख्यदा तारा जीवा
चरणा रजतालि द्यावा दासां विसाव भक्तां विसावा ॥ आरति सायिबाबा ॥
३। जयदेव जयदेव दत्ता अवधूता ओ सायि अवधूता ।
जोडुनि करतवचरणी ठेवीतो माधा जयदेव जयदेव ॥
अवतरसि तू येता धर्मास्ते ग्लानी
नास्तीकानाही तू लाविसि निजभजनी
दाविसि नानालीला असङ्ख्यरूपानी
हरिसी दीनां चे तू सङ्कट दिनरजनी ॥ १
जयदेव जयदेव दत्ता अवधूता ओ सायि अवधूता ।
जोडुनि करतवचरणी ठेवीतो माधा जयदेव जयदेव ॥
यवन स्वरूपि एक्या दर्शन त्वादिधले
सम्शय निरसुनिया तद्वैता घालविले
गोपीचन्दा मन्द त्वान्ची उद्दरिले
मोमिन वम्शी जन्मुनी लोका तारियले ॥ २
जयदेव जयदेव दत्ता अवधूता ओ सायि अवधूता ।
जोडुनि करतवचरणी ठेवीतो माधा जयदेव जयदेव ॥
भेदन तत्त्वी हिन्दूयवनान चा काही
दावायासि झाला पुनरपि नरदेहि
पाहसि प्रेमानेन तू हिन्दू यवनाहि
दाविसि आत्मात्वाने व्य़ापक हा सायी ॥ ३
जयदेव जयदेव दत्ता अवधूता ओ सायि अवधूता ।
जोडुनि करतवचरणी ठेवीतो माधा जयदेव जयदेव ॥
देवा सायिनाथ त्वत्पदनत ह्वाने
परमायामोहित जनमोचन झणि ह्वावे
त्वत्कृपया सकलान चे सङ्कट निरसावे
देशिल तरिदेत्वद्रुश कृष्णाने गावे ॥ ४
जयदेव जयदेव दत्ता अवधूता ओ सायि अवधूता ।
जोडुनि करतवचरणी ठेवीतो माधा जयदेव जयदेव ॥
४। शिरिडि माझे पण्डरपुर सायिबाबा रमावर
बाबा रमावर सायिबाबा रमावर
शुद्ध भक्ति चन्द्र भागा भाव पुण्डलीक जागा
पुण्डलीक जागा भाव पुण्डलीक जागा
याहो याहो अवघे जन करू बाबान्सी वन्दन
सायिसी वन्दन करु बाबान्सी वन्दन
गणूह्मणे बाबा सायि दाव पाव माझे आयी
पाव माझे आयी दाव पाव माझे आयी ।
५। घालीन लोटाङ्गण वन्दीन चरण
डोल्यानि पाहीन रूप तुझे
प्रेमे आलिङ्गन आनन्दे पूजीन
भावे ओवालिन ह्मणेनमा ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावत ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि ॥
अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरिं
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥
हरे राम हरे राम राम राम हरेहरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥
श्री गुरुदेवदत्त
६। हरिः ओं यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवा-
स्तानिधर्माणी प्रधमान्यासन ।
तेहनाकं महिमानः सचन्त
यत्रपूर्वे साध्यास्सन्ति देवाः ।
ओं राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे
समे कामान काम कामाय मह्यं
कामेश्वरो वै श्रवणोदधातु
कुबेराय वैश्रवणाय़ महाराजाय नमः
ओं स्वस्ति साम्राज्यं भोज्यं
स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्या
ईश्यास्सार्वभ्ॐअस्सार्वायुषान
तादा पदार्थात पृधिव्यै समुद्रपर्यन्तायाः
एकराल्लिति तदप्य़ेष श्लोको भिगितो मरुतः
परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन गृहे
आविक्षतस्य काम प्रेर विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
श्री नारायण वासुदेवाय सच्चिदानन्द
सद्गुरु सायिनाथ महराज की जै ।
७। अनन्ता तुलाते कसेरे स्तवावे
अनन्ता तुलाते कसेरे नमावे
अनन्ता मुखाञ्चा शिणे शेषगाता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
स्मरावे मनी त्वत्पदा नित्यभावे
उरावेतरी भक्ति साठी स्वभावे
तरावे जगा तारुनी मायताता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
वसे जो सदा दावया सन्तलीला
दिसे आज्ञ लोकान परीजो जनाला
परी अन्तरी ज्ञान कैवल्यदाता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
भरालाधला जन्महा मानवाचा
नरासार्थका साधनीभूत साच
धरू सायि प्रेमगलाया अहन्ता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
धरावे करीसान अल्पज्ञबाला
करावे आम्हाधन्य चुम्बो निगाला
मुखी घाल प्रेमे खरा ग्रास अता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
सुरादीक जाञ्च्या पदा वन्दिताती
शुकादीक जान्ते समानत्वदेती
प्रयागादि तीर्धे पदी नम्रहोता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
तुझ्या ज्या पदा पाहता गोपबाली
सदारङ्गली चित्स्वरूपी मिलाली
करी रासक्रीडा सवे कृष्णनाथा
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
तुलामागतो मागणे एकध्यावे
कराजोडितो दीन अत्यन्त भावे
भवी मोहनीराज हातारि आता
नमस्कार साष्टाङ्ग श्रीसायिनाथा ।
८। ऐ सायेईबा सायिदिगम्बरा।
अक्षयरूप अवतारा सर्वहि व्य़ापक तू शृतिसारा
अनसूयात्रि कुमारा बाबाये ईबा ।
Recite sai baba aarti on Thursday puja
काशीस्नानजप प्रतिदिवसि कोल्हापुर भिक्षेसि
निर्मल नदितुङ्गा जलप्रासी निद्रा माहुर देशी ॥ ऐ सायेईबा ॥
झोलीलोम्बतसे वाम करी त्रिशूल ढमरूधारी
भक्ता वरदा सदा सुखकारी देशिल मुक्तीचारी ॥ ऐ सायेईबा ॥
पायी पादुका जपमाला कमण्डलू मृगछाला ।
धारणकरि शीबा नागजटा मुकुल शोभतो मादा ॥ ऐ सायेईबा ॥
तत्पर तुझ्याया जेध्यानी अक्षयत्याञ्चे सदनी
लक्ष्मीवासकरी दिनरजनी रक्षसि सङ्कटवारुनि ॥ ऐ सायेईबा ॥
या परिध्यान तुझे गुरुराया दृश्यकरी नयनाय ।
पूर्णानन्द सुखे ही काया लाविसि हरिगुण गाया ॥
ऐ सायेईबा सायिदिगम्बरा।
अक्षयरूप अवतारा सर्वहि व्य़ापक तू शृतिसारा
अनसूयात्रि कुमारा बाबाये ईबा ।
९। सदासत्स्वरूपं चिदानन्दकन्दं
जगत्संभवस्थानसंहार हेतुम ॥
स्वभक्तेच्छया मानुषं दर्शयन्तं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ १ ॥
भवध्वान्त विध्वंस मार्ताण्ड मीड्यं
मनोवागतीतं मुनिर्ध्यान गम्यम ॥
जगद्व्यापकं निर्मलं निर्गुणं त्वां
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ २ ॥
भवाम्बोधिमग्नार्थितानां जनानां
स्वपादाश्रितानां स्वभक्ति प्रियाणाम ॥
समुद्धारणार्धं कलौ संभवं तं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ३ ॥
सदा निम्बवृक्षस्य मूलाधिवासात
सुधास्राविणं तिक्तमप्य प्रियन्तम
तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ४ ॥
सदा कल्पवृक्षस्य तस्याधिमूले
भवद्भावबुद्ध्या सपर्यादि सेवाम
नृणाङ्कुर्वतां भुक्तिमुक्तिप्रदं तं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ५ ॥
अनेका शृता तर्क्यलीलाविलासै
समाविष्कृतेशान भास्वत्प्रभावम ॥
अहंभावहीनं प्रसन्नात्मभावं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ६ ॥
सतां विश्रमाराममेवाभिरामं
सदा सज्जनैस्संस्तुतं सन्नमद्भिः
जनामोददं भक्तभद्रप्रदं तं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ७ ॥
अजन्माद्यमेकं परब्रह्म साक्षात
स्वयं संभवं राममेवावतीर्णम ॥
भवद्दर्शनात्सम्पुनीतः प्रभोऽहं
नमामीश्वरं सद्गुरुं सायिनाथम ॥ ॥ ८ ॥
श्री सायीश कृपानिधेऽखिलनृणां सर्वार्थ सिद्धिप्रद
युष्मत्पादरजः प्रभावमतुलं धातापि वक्ताक्षमः ॥
सद्भक्त्याश्शरणं कृताञ्जलिपुटस्सम्प्राप्तितोस्मि प्रभो
श्रीमत्सायिपरेशपादकमला नाऽन्यच्छरण्यं मम ॥ ९ ॥
सायि रूपधर राघवोत्तमं
भक्तकाम विभुद द्रुमं प्रभुम
माययोपहत चित्तशुद्धये
चिन्तयाम्यमहर्निशं मुदा ॥ १० ॥
शरत्सुधाम्शु प्रतिमं प्रकाशं
कृपातपत्रं तवसायिनाथ ।
त्वदीय पादाब्ज समाश्रितानां
स्वच्छायया तापमपाकरोतु ॥ ॥ ११ ॥
उपासना दैवत सायिनाथ ।
स्तवैर्मयोपासनि नास्तुतस्त्वं
रमेन्मनोमे तवपादयुग्मे
भृङ्गो यथाब्जे मकरन्दलुब्धः ॥ १२ ॥
अनेक जन्मार्जित पापसङ्क्षयो
भवेद्भवत्पाद सरोज दर्शनात ।
क्षमस्व सर्वानपराध पुञ्जकान
प्रसीद सायीश सद्गुरो दयानिधे ॥ १३ ॥
श्री सायिनाथ चरणामृत पूर्ण चित्ता-
-स्त्वत्पादसेवनरतास्सततञ्च भक्त्या ।
संसार जन्यदुरितौ धविनिर्गतास्ते
कैवल्यधाम परमं समवाप्नुवन्ति ॥ १४ ॥
स्तोत्रमेतत्पठेद्भक्त्या यो नरस्तन्मनास्सदा ।
सद्गुरोस्सायिनाथस्य कृपापात्रं भवेद्धृवम ॥ १५ ॥
१०। करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवण नयनजं वा मानसं वाऽपराधम ॥
विहितमविहितं वा सर्वमेतत क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री प्रभो सायिनाथ ॥
श्री सच्चिदानंफ़्द सद्गुरु सायीनाथ महराज की जै ।
राजाधिराज योगिराज परब्रह्म सायिनाथ महाराज
श्री सच्चिदानन्द सद्गुरु सायिनाथ महराज की जै ।
श्री साईं बाबा मध्याह्न आरति पूर्ण ||