पढ़ें शनि देव की जन्म कथा, जानिए पिता सूर्य देव को क्यों झेलना पड़ा शनि प्रकोप

न्याय के देवता शनि देव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को हुई थी,

Update: 2021-06-09 02:26 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|  न्याय के देवता शनि देव का जन्म ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को हुई थी, इसलिए इसे शनि अमावस्या के नाम से जानते हैं। इस वर्ष शनि जयंती या शनि जन्मोत्सव 10 जून दिन गुरुवार को है। शनि जयंती पर हम आपको शनि देव की जन्म कथा के बारे में बताते हैं। शनि देव की जन्म कथा, हमें पुराणों में अलग-अलग वर्णन के साथ मिलती है। कुछ ग्रंथों के अनुसार, इनका जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को भी माना जाता है।

शनि देव की जन्म कथा
स्कंद पुराण के काशीखंड में बताया गया है कि शनि देव के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। माता छाया को संवर्णा के भी नाम से जाना जाता है। वहीं एक अन्य कथा के अनुसार, शनि देव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देवता के साथ हुआ। संज्ञा सूर्यदेव के तेज से परेशान रहती थीं। दिन बीतते गए और संज्ञा ने मनु, यमराज और यमुना नामक तीन संतानों को जन्म दिया। सूर्येदेव का तेज संज्ञा ज्यादा दिनों तक सह नहीं पाईं, लेकिन बच्चों के पालन के लिए उन्होंने अपने तप से अपनी छाया को सूर्यदेव के पास छोड़कर चली गईं।
संज्ञा की प्रतिरूप होने की वजह से इनका नाम छाया हुआ। संज्ञा ने छाया को सूर्यदेव के बच्चों जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि यह राज मेरे और तुम्हारे बीच ही रहना चाहिए। संज्ञा पिता के घर पंहुचीं, तो उन्हें वहां शरण मिली। संज्ञा वन में जाकर घोड़ी का रूप धारण करके तपस्या में लीन हो गईं। उधर सूर्यदेव को भनक भी नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं, संवर्णा हैं। संवर्णा ने बखूबी से नारीधर्म का पालन किया।
छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से कोई परेशानी भी नहीं हो रही थी। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से मनु, शनि देव और भद्रा तीन संतानों ने जन्म लिया। जब शनि देव छाया के गर्भ में थे, तब छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने का प्रभाव छाया के गर्भ में पल रही संतान पर भी पड़ा। इसकी वजह से शनि देव का रंग काला है। जन्म के समय शनि देव के रंग को देखकर सूर्यदेव ने पत्नी छाया पर संदेह करते हुए उन्हें अपमानित किया।
मां के तप की शक्ति शनि देव को गर्भ में प्राप्त हो गई। उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा, तो उनकी शक्ति से काले पड़ गए और उनको कुष्ठ रोग हो गया। घबराकर सूर्यदेव भगवान शिव की शरण में पहुंचे। शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का बोध करवाया। सूर्यदेव ने पश्चाताप में क्षमा मांगी, फिर से उन्हें अपना असली रूप वापस मिला। इस घटनाक्रम की वजह से पिता और पुत्र का संबंध हमेशा के लिए खराब हो गया।


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