सच पूछिए तो प्रार्थना की नहीं जाती। जब व्यक्ति सत्वबुद्धि में स्थितप्रज्ञ होते हुए सांसारिक इच्छाओं के प्रति अनासक्त होकर और परमपुरुष का निमित्त मात्र बनकर कर्म करता है, तब प्रार्थना अपने आप घटित होती है। जब व्यक्ति मन, बुद्धि और कर्ता भाव से ऊपर उठकर अपने आप को बिल्कुल निढाल छोड़ देता है और समग्रतापूर्वक अपने को देखने लगता है तो उसका संपूर्ण अस्तित्व शांत होकर सत्य की अनुभूति में उतरने लगता है। इस स्थिति में उसका द्वैत भाव विलीन हो जाता है और शेष रह जाता है केवल ईश्वरीय आनंद।
प्रार्थना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा आरोग्य हासिल करने की सर्वोच्च प्रक्रिया है। जीवन को प्रखर व ऊर्जावान बनाने के लिए नियमित प्रार्थना जरूरी है। मनोविश्लेषक नॉर्मन विंसेंट पील कहते हैं कि प्रार्थना न केवल अवसाद और उससे जुड़ी अन्य बीमारियों से छुटकारा दिलाती है बल्कि असाध्य समझी जाने वाली शारीरिक बीमारियों का निदान भी इसकी शक्ति से संभव है। कोविड के दौरान अमेरिका में किए गए वैज्ञानिक परीक्षण बताते हैं कि प्रसन्नता और प्रार्थना का नजदीकी रिश्ता है। नास्तिकता का बुद्धिमत्ता से नजदीक का रिश्ता बताया जाता है। लेकिन कहते हैं कि नास्तिक लोगों के खुश रहने और रोगों से जूझने की क्षमता कमजोर होती है, क्योंकि उनका नजरिया केवल तर्क-वितर्क तक सीमित रहता है।
दरअसल, शब्द जब सेवा, समर्पण, श्रद्धा और आस्था से लबरेज होकर विराट परमेश्वर से सहायता के प्रयोजन से ब्रह्मांड में गुंजायमान हो उठता है, तो वह प्रार्थना बन जाता है। प्रार्थना आत्मा का परिधान है, प्रार्थना विश्वास का विधान है। प्रार्थना प्रेम का प्रवाह है, प्रार्थना अध्यात्म का निर्वाह है। प्रार्थना ऐसी भावयुक्त प्रेरक शक्ति है, जो व्यक्ति को जिंदगी की तकलीफों से जूझने का साहस और संबल देती है। प्रार्थना अनन्य भावना से युक्त होकर भावपूर्ण हृदय से निकली ऐसी करुण पुकार है, जिसका याचक के अवचेतन मस्तिष्क पर उपचारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रार्थना वह ईश्वरीय शक्ति है जो समस्त मानसिक संतापों और काया-क्लेशों से सुरक्षा कवच प्रदान करती है। दैनिक प्रार्थना से व्यक्ति का दृष्टिकोण रचनात्मक तो रहता ही है, उसका मन शांत और अंत:करण भी निर्मल रहता है। तन-मन में स्फूर्ति, उमंग और उत्साह की अनुभूति होती है। जिसका प्रार्थना की शक्ति में विश्वास नहीं है वह अनजाने ही शक्ति के एक सुलभ स्रोत से वंचित हो जाता है। प्रार्थना के सतत अभ्यास से व्यक्ति की चेतना का हर दिशा में विस्तार होता है। प्रार्थना व्यक्ति के व्यक्तित्व को रूपांतरित करने में औषधि का काम करती है।