Pradosh Vrat 2024 Katha: हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है.जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही हो, तो इस व्रत के करने से जल्द ही लोगों के विवाह के योग बनने लगते हैं. इसके अलावा वैवाहिक जीवन में आने वाली परेशानियों से भी छुटकारा मिलता है और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.
पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 15 अक्टूबर को तड़के सुबह 03 बजकर 42 मिनट पर शुरू हो चुकी है. और 16 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 19 मिनट पर इसका समापन होगा. इसलिए उदयातिथि के अनुसार, 15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार को ही भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा.
Pradosh Vrat Puja Vidhi : प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत के दिन शिवलिंग पर दूध, दही, शहद आदि से अभिषेक करें और प्रदोष काल में शिवलिंग के सामने बैठकर दीपक जलाएं और धूप-दीप करें. शुद्ध मन से इन मंत्रों का 108 बार या अपनी इच्छानुसार जाप करें.शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं और प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें.
प्रदोष व्रत की कथा Pradosh Vrat Ki Katha
पैराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है, एक राजकुमार था जो बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान था, लेकिन उसे कोई योग्य वधू नहीं मिल रही थी. उसने कई जगह विवाह के प्रस्ताव भेजे लेकिन हर बार कोई न कोई बाधा आ जाती थी. उसने बहुत से ज्योतिषियों से अपनी कुंडली दिखाई लेकिन सभी ने यही कहा कि उसके विवाह में देरी हो रही है. बहुत निराश होकर राजकुमार ने एक संत से मिलने का निश्चय किया. संत ने राजकुमार की समस्या सुनकर उसे प्रदोष व्रत करने और भगवान शिव की पूजा करने का सुझाव दिया. उन्होंने राजकुमार को एक कथा सुनाई|
एक समय की बात है, एक निर्धन पुजारी था. उस पुजारी की मृत्यु हो जाने के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने बेटे के साथ भीख मांग कर गुजारा करती थी. एक दिन विधवा स्त्री की मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई. राजकुमार अपने पिता की मृत्यु के बाद निराश्रित होकर भटक रहा था. पुजारी की पत्नी को उसपर दया आई और वह उसे अपने साथ ले गई और पुत्र की तरह रखने लगी|
एक बार पुजारी की पत्नी दोनों पुत्रों के साथ ऋषि शांडिल्य के आश्रम में गई. वहां उसने प्रदोष व्रत की विधि और कथा सुनी और घर आकर उसने व्रत रखना शुरू कर दिया. बाद में किसी दिन दो बालक वन में घूम रहे थे. पुजारी का बेटा घर लौट आया लेकिन राजा का बेटा वन में गंधर्व कन्या से मिला और उसके साथ समय गुजारने लगा. कन्या का नाम अंशुमति था. दूसरे दिन भी राजकुमार उसी स्थान पर पहुंचा. वहां अंशुमति के माता-पिता ने उसे पहचान लिया और उससे अपनी पुत्री का विवाह करने की इच्छा प्रकट की. राजकुमार की स्वीकृति से दोनों का विवाह हो गया|
आगे चलकर राजकुमार ने गंधर्वों की विशाल सेना के सथ विदर्भ पर आक्रमण कर दिया. युद्ध जीतने के बाद राजकुमार विदर्भ का राजा बन गया. उसने पुजारी की पत्नी और उसके बेटे को भी राजमहल में बुला लिया. अंशुमति के पूछने पर राजकुमार ने उसे प्रदोष व्रत के बारे में बताया कि इसी तरह, प्रदोष व्रत करने से राजकुमार का विवाह हुआ और वह राजा बन गया. संत ने राजकुमार से कहा कि तुम भी ब्रह्मा जी की तरह प्रदोष व्रत करो और भगवान शिव की पूजा करो. तुम्हारी भी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी|
राजकुमार ने संत की बात मानकर प्रदोष व्रत किया और भगवान शिव की पूजा की. कुछ ही समय बाद उसे एक योग्य कन्या मिल गई और उनका विवाह धूमधाम से हुआ. यह कथा बताती है कि भगवान शिव की कृपा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. प्रदोष व्रत करने और भगवान शिव की पूजा करने से विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और जल्द ही विवाह के योग बनते हैं|