पोंगल त्यौहार को दक्षिण भारत में इस तरह से मनाएं जाते है

मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में मनाया जाता है।

Update: 2021-01-15 09:48 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | मकर संक्रांति को दक्षिण भारत में पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह किसानों का पर्व है। पोंगल दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। पोंगल फसल की कटाई का उत्सव है। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है। यह पर्व चार दिनों तक रहता है। प्रकृति को समर्पित यह त्योहार फसलों की कटाई के बाद आदि काल से मनाया जा रहा है।

इस त्योहार में पहले दिन वर्षा और अच्छी फसल के लिए भगवान इंद्रदेव की पूजा की जाती है। पोंगल की दूसरी पूजा सूर्य पूजा होती है। इसमें सूर्यदेव को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जाता है। तीसरे दिन भगवान शिव के बैल नंदी की पूजा की जाती है। कहते हैं शिव जी के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई, उस भूल के सुधार के लिए भगवान भोलेनाथ ने उन्हें बैल बनकर पृथ्वी पर मनुष्यों की सहायता करने को कहा।

चौथा पोंगल कन्या पोंगल है जो काली मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता। इसमें केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं। इस त्योहार पर लोग भगवान से आगामी फसल के अच्छे होने की प्रार्थना करते हैं। इस त्योहार में वर्षा, धूप, सूर्य, इन्द्रदेव तथा मवेशियों की पूजा की जाती है। दक्षिण भारत में सूर्यदेव के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। इस त्योहार पर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। नए वस्त्र और बर्तन खरीदे जाते हैं। बैलों और गायों के सींग रंगे जाते हैं। इस त्योहार पर गाय के दूध के उफान को बहुत महत्व दिया जाता है। नए बर्तनों में दूध उबाला जाता है। इस त्योहार पर विशेष तौर पर खीर बनाई जाती है। इस दिन मिठाई और व्यंजन तैयार किए जाते हैं। चावल, दूध, घी, शकर से भोजन तैयार कर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है। इस त्योहार पर भूखों को भोजन कराया जाता है और जरूरतमंदों को वस्त्र वितरण किए जाते हैं। गाय की पूजा की जाती है और पशुओं को सजा कर अच्छे पकवान खिलाए जाते हैं।

यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को देवराज इंद्र के सम्मान में यह त्योहार मनाने की अनुमति दी। चार दिनों के इस त्योहार के अंतिम दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है। इस दिन घर की साफ सफाई कर आम और नारियल के पत्तों से दरवाजे पर तोरण बनाया जाता है। महिलाएं इस दिन घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाती हैं। इस दिन से ही तमिल महीना चिथिरई भी आरंभ होता है।

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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