भरणी नक्षत्र में पितृ तर्पण का है अधिक महत्व, जानिए वजह

हमारे पूर्वज देवों और हमारे मध्य सेतु का कार्य करते हैं, और हम जब पितरों को श्राद्ध के दिनों में तृप्त कर देते हैं, तो देवों तक हमारी प्रार्थना बड़ी आसानी से पहुंच जाती है।

Update: 2021-09-21 06:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रों द्वारा मनुष्य के लिए तीन प्रकार के ऋण अर्थात कर्त्तव्य बताए गए हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण तथा पितृ ऋण। स्वाध्याय द्वारा ऋषि ऋण से, यज्ञों द्वारा देव ऋण से और श्राद्ध तथा तर्पण द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बतलाया गया है। पितृपक्ष में हम अपने पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि हम आपके दर्शाए गए मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं। हमारे पूर्वज देवों और हमारे मध्य सेतु का कार्य करते हैं, और हम जब पितरों को श्राद्ध के दिनों में तृप्त कर देते हैं, तो देवों तक हमारी प्रार्थना बड़ी आसानी से पहुंच जाती है।

आने वाले 24 सितंबर को भरणी नक्षत्र और चतुर्थी तिथि है। कूर्म पुराण और अग्नि पुराण में वर्णित है कि भरणी और रोहिणी जैसे सम नक्षत्रों में पितरों को दिया गया तर्पण, गया तीर्थ में दिए गए तर्पण के समान होता है। वायु पुराण और श्राद्ध प्रकाश में वर्णित है कि भरणी श्राद्ध के दिन दिया गया तर्पण मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। इस दिन पितरों को दिया गया तर्पण जीवन में कालसर्प दोष जैसी समस्याओं से भी मुक्ति दिलाएगा। 24 तारीख को अपराह्न काल में कांसे के पात्र में जल लेकर वसु, रुद्र और आदित्य रूपी अपने पितरों को काले तिल, जौ, उड़द, चावल और कुशा से दक्षिण दिशा की ओर मुख कर के तर्पण दें।
श्राद्ध पक्ष में कौओं को आमंत्रित कर उन्हें श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। कारण है कि हिन्दू पुराणों ने कौवे को देवपुत्र माना है। कथा है कि इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौवे का रूप धारण किया था। त्रेता युग में जयंत ने कौवे का रूप धर कर माता सीता को घायल कर दिया था। तब भगवान श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र से उसकी एक आंख को क्षतिग्रस्त कर दिया। पश्चाताप होने पर जयंत ने अपने कृत्य के लिए प्रभु राम से क्षमा मांगी, तब प्रभु राम ने उसके उस रूप को वरदान दिया कि उसे अर्पित किया गया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौवों को भोजन कराया जाता है।


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