पितृपश्र के दौरान गया में श्राद्ध और पिंडदान करने से मिलती है आत्मा को मुक्ति, जानें पौराणिक महत्व
पितृ पक्ष चल रहा है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध करते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पितृ पक्ष (Pitru Paksha) चल रहा है. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध करते हैं. पिंडदान करने वाले ज्यादातर लोगों को इच्छा होती है कि वे अपने पूर्वजों का पिंडदान गया (Gaya) जा करें. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान और श्राद्ध करने से व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. देश में कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन गया में पिंडदान करना सबसे फलदायी माना जाता है. इस जगह से कई धार्मिक कहानियां जुड़ी है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है उनके पूर्वजों को स्वर्ग मिलता है. क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद है.
पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नामक के राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वे देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए. इस वरदान के बाद जो भी पाप करता है, वो गयासुर के दर्शन से पाप मुक्तु होने लगें. ये सब देखकर देवताओं ने चिंता जताई और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पीठ पर यज्ञ करने की मांग की.
जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया. इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी. यज्ञ खत्म होने के बाद भगवान विष्णु ने उनकी पीठ पर बड़ा सा शीला रखकर स्वयं खड़े हो गए थे.
गरूड़ पुराण मे भी कहा गया है जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म के लिए गया जाता है उसका एक- एक कदम पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाता है. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाता है. पड़ितो के अनुसार फ्लगु नदी पर बिना पिंडदान किए अधूरी मानी जाती है. ये यात्रा पुनपुन नदी के किनारे से शुरू होती है. फल्गु नदी का अपना इतिहास है. फल्गु नदी का पानी धरती के अंदर से बहती है बिहार में गंगा नदी में मिलती है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने दशरथ का आत्मा की शांति के लिए नदी के तट पर पिंडदान किया था.
गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी जहां पिंडदान किया जाता था, इनमें से 48 बची हैं. इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है. हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है.