मंगलवार को इस विधि से करें भगवान हनुमान की आरती, मनोकामनाएं होंगी पूरी

हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन अंजनी पुत्र भगवान हनुमान की कृपा पाने और पूजा अर्चना के लिए उत्तम माना गया है। इस दिन विधि विधान से पूजा करने से महाबली हनुमान की कृपा प्राप्त होती है।

Update: 2022-07-12 03:28 GMT

हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन अंजनी पुत्र भगवान हनुमान की कृपा पाने और पूजा अर्चना के लिए उत्तम माना गया है। इस दिन विधि विधान से पूजा करने से महाबली हनुमान की कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यता है कि मंगलवार के दिन हनुमान की पूजा और व्रत रखने से हनुमान जी जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। ऐसे में वीर बजरंगी की कृपा पाने के लिए मंगलवार के दिन विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। साथ ही हनुमान जी की पूजा के बाद कपूर जलाकर आरती करना बहुत ही शुभ माना जाता है। हनुमान जी की आरती करने से बजरंग बली का आशीर्वाद प्राप्त होता है और हर तरह कि भय बाधा से मुक्ति मिलती है। यहां हनुमान जी की आरती लिरिक्स और इसकी विधि दी गई है, जिन्हें आप पूजा के दौरान विधि पूर्वक पढ़ सकते हैं....

हनुमान जी की आरती की सही विधि

प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को सुबह और शाम के समय में हनुमान जी की आरती करनी चाहिए। अधिक व्यस्तता या किसी अन्य वजह से आप यदि सुबह आरती नहीं कर सकते हैं तो शाम के समय कर सकते हैं।

आरती के लिए घी का दीपक जलाएं। फिर आरती का प्रारंभ शंख ध्वनि से करें। शंख कम से कम तीन बार बजाएं। ध्यान रहे कि आरती के समय घंटी भी बजानी चाहिए। आरती का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, आरती के लिए आप घी के दीपक या फिर कपूर का भी उपयोग कर सकते हैं।

श्री हनुमानजी आरती

आरती कीजै हनुमान लला की।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

जाके बल से गिरिवर कांपे।

रोग दोष जाके निकट न झांके॥

अंजनि पुत्र महा बलदाई।

सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥

दे बीरा रघुनाथ पठाए।

लंका जारि सिया सुधि लाए॥

लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।

जात पवनसुत बार न लाई॥

लंका जारि असुर संहारे।

सियारामजी के काज सवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।

आनि संजीवन प्राण उबारे॥

पैठि पाताल तोरि जम-कारे।

अहिरावण की भुजा उखारे॥

बाएं भुजा असुरदल मारे।

दाहिने भुजा संतजन तारे॥

सुर नर मुनि आरती उतारें।

जय जय जय हनुमान उचारें॥

कंचन थार कपूर लौ छाई।

आरती करत अंजना माई॥

जो हनुमानजी की आरती गावे।

बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥


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