पौराणिक कथा: मूषक भगवान गणेश का वाहन कैसे बने ? जानिए

गणेश जी का वाहन मूषक ही क्यों है यह जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है किन्तु इस घटना के पीछे बड़ी रुचिकर कथा है।

Update: 2021-09-12 03:53 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गणेश जी का वाहन मूषक ही क्यों है यह जानने की जिज्ञासा सभी को रहती है किन्तु इस घटना के पीछे बड़ी रुचिकर कथा है वह यह कि एक बार इंद्र की सभा में कौंच नामक श्रेष्ठ गंधर्व सभा से उठकर बाहर जाना चाहता था, तभी असावधानी वश उसका पैर मुनिवर बामदेव को स्पर्श कर गया। अपने आपको अनादर पूर्ण देखकर मुनिवर ने कौंच ने गंधर्व को तुरंत श्राप दे दिया कि तू मूषक हो जाएगा। भयभीत गंधर्व हाथ जोड़कर मुनि से करुण प्रार्थना करने लगा, तब दयालु ऋषि ने पुनः कहा कि जा तू देवाधिदेव गजानन का वाहन होगा तब तेरा दुख दूर हो जाएगा।

उसी समय कौंच गंधर्व मूषक बनकर महर्षि पराशर ऋषि के आश्रम में गिर पड़ा। वह मूषक पर्वत तुल्य अत्यंत विशाल और भयानक था, उसके उसके दांत अत्यंत बड़े तीक्ष्ण और भय उत्पन्न करने वाले थे। उस महाबलवान मूषक ने पाराशर आश्रम में भयानक उपद्रव किया, पात्रों को तोड़फोड़ कर समस्त अन्न समाप्त कर दिया। ऋषियों के समस्त वस्त्रों को कुतर-कुतर कर टुकड़े टुकड़े कर डाले और उसके पूछ के प्रहार से आश्रम के वृक्ष धराशाई हो गए। वाटिका उजाड़ हो गई, आश्रम की समस्त उपयोगी वस्तुएं नष्ट हो जाने के कारण ऋषि अत्यंत दुखी हुए और सोचने लगे कि दुष्टों के कारण स्थान छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जाना चाहिए। इस विपत्ति से अपने आपको बचाने के लिए मैं क्या करूं? किस का स्मरण करूं? मेरा यह दुख कौन दूर करेगा? मैं किसकी शरण ग्रहण करूं? इस प्रकार दुख से व्याकुल हुए अपने पिता के वचन सुनकर तुरंत गजमुख ने अत्यंत मधुर वाणी में कहा ! पूज्य पिताजी मैं दुष्टों का संहार करने वाला हूं, मेरे रहते आप चिंता न करें। मैं आपको पुत्र रूप में प्राप्त हुआ हूं तो आपका कष्ट भी मै ही हरूँगा, आप मेरी कला देखिए इस मूषक को मैं अपना वाहन बना लेता हूं।

महर्षि पाराशर से इतना कहकर गजानन ने मूषक पर सूर्य के समान अपना तेजस्वी पाश फेंका। उस पाश से संपूर्ण अंतरिक्ष प्रकाशित हो रहा था जिसके भय से देवताओं ने अपना स्थान त्याग दिया। उस पाश से दशों दिशाएं प्रकाशित हो रही थीं, पाश से गजमुख ने मूषक का कंठ बांध लिया और उसे बाहर निकालने लगे। महाबली मूषक भय और पीड़ा से व्याकुल होकर मूर्छित हो गया, कुछ देर बाद मूर्छा दूर होने पर शोकाकुल होकर सोचने लगा कि अचानक देव निर्मित काल कैसे आ गया। निश्चय ही होनी होकर रहती है मैं अपने दांतों से पर्वतों को नष्ट कर देता था और देवता, असुर, राक्षस और मनुष्यों की तो कोई गणना ही नहीं करता था। ऐसे मुझ महाशक्तिशाली का गला किसने बांध लिया.? तभी पास में बैठे हुए मूषक ने गजमुख का दर्शन किया तो उसे ज्ञान हुआ। उसने परम प्रभु के चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम किया और स्तुति करते हुए कहने लगा ! प्रभु आप संपूर्ण जगत के स्वामी, जगत के कर्ता-धर्ता और पालक हैं मैं आपका दर्शन पाकर धन्य हो गया मेरे दोनों नेत्र सफल हो गए अब आप मुझ पर प्रसन्न होइए। मूषक की इस प्रकार भक्तिपूर्ण वाणी सुनकर पराशर नंदन गजमुख

प्रसन्न हो गए। 

उन्होंने मूषक से कहा तूने देवताओं और ब्राह्मणों को कष्ट दिया और मैंने दुष्टों का नाश और साधु-पुरुषों के सुख के लिए ही अवतार लिया है तू मेरी शरण आ गया है इसलिए निर्भय हो जा। तेरी कोई इच्छा हो तो वर मांग ले ! मूषक को पुनः अहंकार हो गया और बोला मुझे आपसे कुछ नहीं मांगना है आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं। तब गजमुख ने कहा यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा, मूषक के तथास्तु कहने पर ही गजानन तक्षण उसके ऊपर जा बैठे। मूषक गजानन के भार से दबकर अत्यंत कष्ट पाने लगा उसे प्रतीत हुआ कि मैं विदीर्ण हो जाऊंगा तब उसने देवेश्वर गणेश से प्रार्थना की कि, प्रभु आप इतने हल्के हो जाएं कि मैं आपका भार वहन कर सकूं। मूषक का गर्व खत्म हुआ और गजमुख उसके वहन करने योग्य हल्के हो गए। गजानन की यह लीला देखकर महर्षि पराशर ने उनके चरणों में प्रणाम निवेदन कर कहा ! अत्यंत आश्चर्य ! बालकों में इतना पौरुष मैंने कहीं नहीं देखा। जिस मूषक के प्रहार से पर्वत भी हिल जाते थे उसे आपने क्षणभर में अपना वाहन बना लिया। इस प्रकार गजानन ने मूषक को हमेशा के लिए अपना वाहन बना लिया और महर्षि वामदेव के श्राप से मूषक बने कौंच गंधर्व का प्रायश्चित आरंभ हुआ। 

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