गणेश पूजा में जरूर करें मयूरेश स्त्रोतम् का पाठ, आपके सभी कष्ट होंगे दूर
भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष विशेष रूप से भगवान गणेश के पूजन को समर्पित है। इस माह की चतुर्थी तिथि से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है।
भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष विशेष रूप से भगवान गणेश के पूजन को समर्पित है। इस माह की चतुर्थी तिथि से लेकर अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है।इस साल गणश उत्सव 10 सितंबर से 19 सितंबर तक चलेगा। मान्यता है कि इस काल में भगवान गणेश स्वयं अपने भक्तों के घर पधारते हैं और उनके दुख और तकलीफें दूर करते हैं। इस काल में भगवान गणेश का पूजन विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। गणेश उत्सव के प्रत्येक दिन लोंग गणेश जी के विभिन्न मंत्रों, स्तुतियों और भजनों का पाठ करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इन्हीं स्तुतियों में से भगवान गणेश की एक प्रभावशाली स्तुति है मयूरेश स्त्रोतम् ।
पौरणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र ने संकट में पड़ने पर मयूरेश स्त्रोत का पाठ किया था। मयूरेश स्त्रोतम् के पाठ से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने देवराज के सारे विघ्न और संकट को दूर कर दिया था। मान्यता है कि गणेश पूजन के काल में नियमित तौर पर जो भगवान गणेश को लाल सिंदूर का तिलक अर्पित कर मयूरेश स्त्रोत का पाठ करता है, विघ्नहर्ता भगवान गणेश उसकी सारी परेशानियां और बाधांए दूर करते हैं।
मयूरेश स्त्रोतम्
ब्रह्ममोवाच -
'पुराण पुरुषं देवं नाना क्रीड़ाकरं मुदाम।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।
परात्परं चिदानंद निर्विकारं ह्रदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
नानादैव्या निहन्तारं नानारूपाणि विभ्रतम।
नानायुधधरं भवत्वा मयूरेशं नमाम्यहम्।।
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरे विभुम्।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
पार्वतीनंदनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम्।
भक्तानन्दाकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम।
समष्टिव्यष्टि रूपं त्वां मयूरेशं नमाम्यहम्।।
सर्वज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम्।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
अनेककोटिब्रह्मांण्ड नायकं जगदीश्वरम्।
अनंत विभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम्।।
मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्व पापप्रनाशनम्।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम्।।
कारागृह गतानां च मोचनं दिनसप्तकात्।
आधिव्याधिहरं चैव मुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम्।।