अचला सप्तमी में जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मिलेगा आरोग्य और संतान प्राप्ति

हिन्दी पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी या सूर्य जयंती होती है।

Update: 2021-02-18 03:44 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | हिन्दी पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी या सूर्य जयंती होती है। इस दिन भगवान सूर्य देव का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान सूर्य देव की पूजा करने, अचला सप्तमी का व्रत करने और कथा का पाठ करने से व्यक्ति को संतान, आरोग्य, धन और संपदा का फल प्राप्त होता है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको अचला सप्तमी की व्रत कथा या रथ सप्तमी की व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। पूजा के समय आपको इस व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए, जिससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होगा।

अचला सप्तमी व्रत कथा/रथ सप्तमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक महिला ने अपने पूरे जीवन में कभी कोई दान पुण्य नहीं किया था। वृद्धा अवस्था में उसे अपनी इस गलती का ज्ञान हुआ तो वह वशिष्ठ मुनि के पास गई। उसने मुनि को अपने मन की बात कह सुनाई। तब वशिष्ठ जी ने उसे रथ सप्तमी यानी अचला सप्तमी के व्रत के महत्व के बताया। साथ ही कहा कि उसे भी अचला सप्तमी का व्रत करना चाहिए। यह व्रत करने से पुण्य लाभ प्राप्त होता है। उन्होंने उस वृद्धा को व्रत की विधि भी बताई। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि आने पर उस महिला ने अचला सप्तमी का व्रत रखा। बताई गई विधि के अनुसार ही सूर्य देव की पूजा की। जब उसका निधन हुआ तो अचला सप्तमी व्रत से प्राप्त पुण्य के प्रभाव उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई।
एक दूसरी कथा के अनुसार, एक राजा के पास अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं था। संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। वह पूजा पाठ करता था और ऋषियों के बताए गए उपायों को भी करता था। वह हमेशा ईश्वर से संतान प्राप्ति का निवेदन करता था। उसकी मनोकामना पूरी हुई और उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ। कुछ समय के बाद उसका पुत्र बीमार हो गया। काफी इलाज कराने के बाद भी निरोग नहीं हुआ। तब उसे एक संत ने अचला सप्तमी का व्रत रखने तथा सूर्य देव की पूजा करने की सलाह दी। उस राजा ने माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी का व्रत रखा और विधि अनुसार पूजा की। उसके व्रत के प्रभाव से उसके पुत्र का स्वास्थ्य ठीक हो गया। बाद उसके पुत्र ने भी राज्य पर अच्छा शासन किया और लो​कप्रिय हुआ।
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