क्षीर सागर में यूं हुई थी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति, जानें कथा

Update: 2022-05-12 15:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Samundra Manthan Stroy: जीवन में सुख-समृद्धि और धन-धान्य से भरपूर रहने के लिए सभी मां लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं. मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं, ताकि सालभर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती रहे. शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की अर्धांग्नि को मां लक्ष्मी को समर्पित है.जिसे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, तो उस व्यक्ति की सभी धन संबंधी परेशानी दूर होती है. साथ ही, जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी. और उन्हें भगवान विष्णु ने अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था. आइए जानते हैं मां लक्ष्मी की उत्पत्ति की संपूर्ण कथा.
क्षीर सागर में यूं हुई थी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति
पौराणिक कथा के अनुसार धन की देवी मां लक्ष्मी की उत्पत्ति क्षीर सागर में मंथन के दौरान हुई थी. धार्मिक कथा के अनुसार ऋषि दुर्वासा अपने क्रोधी स्वभाव के चलते जाने जाते थे. उन्होंने एक बार राजा इंद्र को सम्मान में फूलों की माला भेंट में दी. ऋषि दुर्वासा के द्वारा दी गई इस माला को राजा इंद्र ने अपने हाथी ऐरावत के सिर पर रख दिया. राजा इंद्र के ऐसा करते ही ऐरावत ने माला को पृथ्वी पर फेंक दिया. इसे देख कर ऋषि दुर्वास अपने क्रोध पर काबू न रख पाए. और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया. और कहा कि इस अंहकार के चलते तुम्हारा पुरुषार्थ क्षीण हो जाएगा. इतना ही नहीं, उनका राज-पाट छिनने का श्राप भी दिया.
कालांतर में तीनों लोगों में दानवों का अत्याचार बढ़ने लगा. तीनों लोकों में दानवों का आधिपत्य हो गया और इसी के चलते राजा इंद्र का सिंहासन छिन गया. इन्हें देख सभी देवतागण घबरा गए और भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे. इस पर उन्होंने समुद्र मंथन की सलाह दी और समुद्र मंथन से निकलने वाले अमृत का पान करने को कहा. ऐसा करने से सभी देवता अमर हो जाते और दानवों को हराने में सफल होते. भगवान विष्णु की सलाहनुसार क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया गया. इसमें 14 रत्नों के साथ अमृत और विष निकला. और इसी दौरान मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई, जिसे भगवान विष्णु द्वारा अर्धांगिनी के रूप में धारण किया गया.


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