शंकर जी को पति के रूप में पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी ने की थी कठोर तपस्या, जानिए ये कथा

वरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस लेख में हम आपको मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा की जानकारी लाए हैं। आइए पढ़ते हैं मां ब्रह्मचारिणी की कथा।

Update: 2020-10-18 05:12 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस लेख में हम आपको मां ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा की जानकारी लाए हैं। आइए पढ़ते हैं मां ब्रह्मचारिणी की कथा।

मां ब्रह्मचारिणी ने पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। इन्हें नारद जी ने उपदेश दिया कि वो शंकर जी को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या करें। इनके उपदेश पर ही मां ने शंकर जी को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। कठिन तपस्या के कारण ही इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की। तपस्या के दौरान मां ब्रह्मचारिणी ने केवल फल-फूल ही खाए। मां ने सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

कई दिनों तक मां ने कठिन उपवास रखा। वो खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप में रहीं। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र भी खाए। कुछ समय बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। यही नहीं मां कई हजार वर्षों तक निर्जल रहीं। उन्होंने शंकर जी को पति स्वरूप में पाने के लिए निराहार तपस्या की। जब मां ने पत्तों को खाना छोड़ दिया तब इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।

इस तपस्या के चलते माता का शरीर क्षीण हो गया। ब्रह्मचारिणी की तपस्या को सभी देवताओं, ऋषियों, सिद्धगणों, मुनियों ने अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया। साथ ही कहा कि हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। केवल आप ही ये कर सकती थीं। आपकी तपस्या का फल आपको जरूर मिलेगा और शिव शंकर आपको पति के रूप में प्राप्त होंगे। आपके पिता आपको लेने के लिए आ रहे हैं। अब आप तपस्या को छोड़ वापस लौट जाइए। इस कथा का सार यह है कि व्यक्ति के जीवन में कितनी भी परेशानियां क्यों न आए उसका मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

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