मन के मौन में आनंद का पर्व है मौनी अमावस्या

माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि को स्नान और दान का बड़ा महत्व माना गया है।

Update: 2022-02-01 13:58 GMT

माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि को स्नान और दान का बड़ा महत्व माना गया है। मौनी अमावस्या पर भगवान विष्णु की पूजा एवं मौन व्रत का विधान है।मौन को सिद्धि का आधार बताया गया है। सिर्फ वाणी का ही नहीं, बल्कि मन का चुप हो जाना मौन है। हमारे मन के भीतर चलने वाली हलचल जब थम जाती है, तभी हम मौन की अवस्था को प्राप्त करते हैं। इस मौन में ही आनंद है। जब हम मुखर होते हैं, तब हमारा संपर्क दूसरों से होता है, लेकिन जब हम मौन होते हैं तो हमारा संपर्क स्वयं से होता है। हमारे भीतर की जो क्षमताएं हैं, वे मौन में प्रकट होती हैं। मौन होने का अर्थ है इच्छाओं से मुक्त हो जाना। ध्यान के लिए मौन चाहिए। हम प्रकृति को निहारें। सूरज, चंद्रमा और नक्षत्र मौन है। आकाश, धरती, पर्वत, वृक्ष भी मौन है। प्रकृति के इस मौन से तादात्म्य स्थापित करें और जीवन में सुख का आह्वान करें।

मौन चार प्रकार का होता है- शरीर के स्तर का, वाणी के स्तर का, इंद्रियों के स्तर का और मन के स्तर का। मन के स्तर का मौन पूर्ण मौन है। मूर्ति की तरह चुप बैठ जाना, शरीर तथा वाणी के स्तर का मौन है। ऐंद्रिय इच्छाओं से मुक्ति पा लेना इंद्रियों के स्तर का मौन है। पूर्ण मौन तब आता है, जब चित्त का चेतना के साथ केंद्रीकरण होता है। यही परम ध्यान है। मन का मौन ही परम मौन है
प्रथम चरण में वाणीगत मौन को अपनाएं। मन का संवाद धीरे-धीरे अभ्यास से शांत होता है। कहा गया है कि जहां पाप की संभावना हो, जहां झगड़ा या कलह हो, वहां मौन ही रहना चाहिए। मौनेन कलहानास्ति। जब कभी दुविधा में हों, तब भी मौन हो जाना चाहिए। पूर्वजों ने मौन के अभ्यास के लिए अवसर निर्धारित किए थे। उनके अनुसार, भोजन, स्नान, प्रभु स्मरण और मल-मूत्र त्याग के समय मौन रहना चाहिए। हर व्यक्ति को पृथक रूप से भी मौन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।


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