पद्मपुराण में बताए गए प्रणायाम के कई फायदे,जानें ये खूबियां
पद्मपुराण में बताई गई हैं प्राणायाम की ये खूबियां
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : पद्मपुराण में बताई गई हैं प्राणायाम की ये खूबियां- प्राणायाम का नाम सुनते ही हमें लगता है कि ये कितना मुश्किल है या फिर एक उम्र के बाद ही इसे किया जा सकता है। जबकि ऐसा नहीं है। आप इसकी खूबियां जानेंगे तो आपको लगेगा कि आप भी इसे तुरंत ही शुरू कर दें। जी हां सनातन धर्म में इसकी महत्ता और फायदों को विस्तारपूर्वक बताया गया है। बता दें कि प्राणायाम किसी भी उम्र में किया जा सकता है। बस ध्यान रखें कि इसके बारे में बताई गई सावधानियों को भूलकर भी नजरअंदाज नहीं करना है। तो आइए जानते हैं कि प्राणायाम के बारे में पद्मपुराण क्या कहता है?
सबसे पहले जान लें क्या होता है प्राणायाम
प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है। अष्टांग योग में आठ प्रक्रियाएं होती हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तथा समाधि । प्राणायाम शब्द दो शब्दों यानी कि प्राण + आयाम से मिलकर बना है। इसका का शाब्दिक अर्थ है – 'प्राण (श्वसन) को लंबा करना' या 'प्राण (जीवनीशक्ति) को लंबा करना'। (प्राणायाम का अर्थ 'श्वास को नियंत्रित करना' या कम करना नहीं है।) प्राण या श्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है। यह प्राण -शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति को जीवनशक्ति प्रदान करता है।
सदा प्राणायाम करने से नष्ट हो जाते हैं पाप
पद्मपुराण के अनुसार जो जातक नियमित रूप से प्राणायाम करते हैं उन्हें यमलोक का कष्ट नहीं झेलना पड़ता। वहीं प्राणायाम करने वाले जातकों के सारे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है यदि प्रतिदिन नियमित रूप से सोलह प्राणायाम किये जाएं तो यह व्यक्ति को महापाप से भी मुक्ति दिला सकता है। यही नहीं अत्यंत फलदायी तपों और एक सहस्त्र गोदान के बराबर का फल एक अकेले प्राणायाम से ही मिल सकता है। प्राणायाम के बल से जातक अपने सारे पापों को पलभर में नष्ट कर सकता है। क्योंकि इससे प्राण का महाप्राण परमात्मा से संबंध बन जाता है और व्यक्ति का मन निर्मल होकर मुक्ति पाने योग्य बन जाता है।
योग में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है प्राणायाम का
प्राणायाम का योग में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। आदि शंकराचार्य श्वेताश्वतर उपनिषद पर अपने भाष्य में कहते हैं, "प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया है वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है। इसलिए शास्त्रों में प्राणायाम के विषय में उल्लेख है। स्वामी विवेकानंद ने प्राणायाम के बारे में कहा है कि "इस प्राणायाम में सिद्ध होने पर हमारे लिए मानो अनंत शक्ति का द्वार खुल जाता है।' वह कहते हैं कि मान लो, किसी व्यक्ति की समझ में यह प्राण का विषय पूरी तरह आ गया और वह उस पर विजय प्राप्त करने में भी कृतकार्य हो गया, तो फिर संसार में ऐसी कौन-सी शक्ति है, जो उसके अधिकार में न आए? उसकी आज्ञा से चंद्रमा-सूर्य अपनी जगह से हिलने लगते हैं, क्षुद्रतम परमाणु से वृहत्तम सूर्य तक सभी उसके वशीभूत हो जाते हैं, क्योंकि उसने प्राण को जीत लिया है। प्रकृति को वशीभूत करने की शक्ति प्राप्त करना ही प्राणायाम की साधना का लक्ष्य है।
प्राणायाम के दौरान इन बातों का रखें खास ख्याल
प्राणायाम करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसमें सबसे पहले तीन बातों को जान लें। इसमें विश्वास,सत्यभावना और दृढ़ता की भावना प्रमुख है। प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अंदर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए। बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए। बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियां एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए। सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें। लेकिन जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें। प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होना चाहिए। प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए। यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें। हर सांस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए। जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिए। हर सांस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जप करें।