Mahakumbh ज्योतिष न्यूज़ : महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्ष के अंतराल पर किया जाता है, जिसे धर्म और आस्था का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। इसे 'महाकुंभ' या 'पूर्णकुंभ' भी कहा जाता है। विश्व प्रसिद्ध यह मेला करोड़ों श्रद्धालुओं, साधु-संतों और गृहस्थ लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कुंभ मेले का आयोजन देश में तीन स्थानों- हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है, जबकि महाकुंभ विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।
प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम है, जिसे 'त्रिवेणी संगम' कहा जाता है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। इस पवित्र अवसर पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत यहां एकत्रित होते हैं। कुंभ मेले का आयोजन लगभग एक महीने तक चलता है, जिसमें कई महत्वपूर्ण तिथियों पर 'शाही स्नान' आयोजित किए जाते हैं।
महाकुंभ का महत्व केवल स्नान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें संयम, श्रद्धा और धार्मिक नियमों का पालन भी अनिवार्य है। माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा स्नान करने वाले गृहस्थ लोगों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि उनके पुण्य के लाभ में कोई बाधा न आए।
गंगा स्नान के नियम
स्नान से पहले गृहस्थ लोगों को दो महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
पहला, साधु-संतों के स्नान के समय उनसे पहले स्नान नहीं करना चाहिए। खासकर 'शाही स्नान' के अवसर पर साधु-संतों को प्राथमिकता दी जाती है। यदि गृहस्थ लोग इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो वे पुण्य के बजाय पाप के भागी बन सकते हैं।
दूसरा, गंगा में स्नान करते समय डुबकी का विशेष महत्व है। कुंभ के दौरान कम से कम पांच बार गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करना चाहिए। यह धार्मिक परंपरा का पालन सुनिश्चित करता है और इसे अधूरे स्नान से अधिक प्रभावकारी माना जाता है।
महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यह मेला आध्यात्मिक ज्ञान, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी महत्वपूर्ण मंच है। कुंभ मेला श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के गहरे रहस्यों को समझने का अवसर देता है। इसलिए, जो भी श्रद्धालु महाकुंभ में गंगा स्नान करने आते हैं, उन्हें धार्मिक परंपराओं और आचार-संहिता का पालन अवश्य करना चाहिए। तभी वे इस पवित्र अवसर का पूर्ण लाभ उठा पाएंगे और पुण्य के भागी बनेंगे।