भगवान शिव अर्धनारीश्वर: भगवान शिव को अर्धनारीश्वर क्यों कहा जाता है, पौराणिक कथाओं में छिपा है रहस्य
भगवान शिव अर्धनारीश्वर
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Lord Shiva Ardhanarishwar Avatar Katha: धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को शक्ति, साहस और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव की पूजा अलग-अलग स्वरूपों में की जाती है। भगवान शिव के कई नामों और स्वरूपों में उनका एक अवतार 'अर्धनारीश्वर' का भी है। भगवान शंकर के इस अवतार में शिवजी का आधा शरीर स्त्री और आधा पुरुष का है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह अवतार स्वयं अपनी मर्जी से लिया था। क्योंकि इस रूप के माध्यम से वह लोगों को इस बात का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष दोनों समान हैं। इसीलिए शिवजी का यह स्वरूप स्त्री और पुरुष की समानता को दर्शाता है।
आखिर क्यों शिवजी को लेना पड़ा अर्धनारीश्वर अवतार
शिवजी का अर्धनारीश्वर रूप इस बात को भी दर्शता है कि समाज और परिवार में स्त्री का महत्व भी पुरुष की तरह समान है। दोनों का जीवन एक दूसरे के बिना अधूरा है। यह रूप यानी स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक होते हैं। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्यों भगवान शिव को अर्धनारीश्वर अवतार लेना पड़ा, क्या है इसका कारण। इस प्रश्न का उत्तर शिवजी के अर्धनारीश्वर रूप के पौराणिक कथा से जुड़ी है। जानते हैं इसके कथा के बारे में..
अर्धनारीश्वर अवतार की पौराणिक कथा
ब्रह्माजी द्वारा रची गई सृष्टि में केवल शिवजी और भगवान विष्णु ही थे। इस तरह से सृष्टि का विस्तार नहीं हो रहा था। ब्रह्मा जी को ज्ञात हुआ की उनकी ये सारी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और ऐसे में हर बार उन्हें नए सिरे से सृष्टि का सृजन करना होगा। इससे ब्रह्माजी दुखी हो गए। तब आकाशवाणी हुई हे ब्रह्म! अब मैथुनी सृष्टि का सृजन करो। आकाशवाणी सुनने के बाद भी ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि की रचना करने में विफल थे। क्योंकि नारियों की उत्पत्ति के बिना यह असंभव था। तब ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि की रचना के लिए शिवजी की मदद ली। उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।
ब्रह्माजी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने अर्धनारीश्वर अवतार लिया। शिवजी के इस स्वरूप में उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव और आधे भाग में स्त्री रूपी उमा शंकर यानी शक्ति नजर आईं। ब्रह्माजी ने कहा, एक उचित सृष्टि का निर्माण करने के लिए मैं अब भी असमर्थ हूं। ब्रह्माजी भगवान शिव से बोले, आपको स्त्री और पुरुष दोनों की मैथुनी सृष्टि की रचना करनी है, जोकि प्रजनन के जरिए संभनव है, इससे ही सृष्टि को आगे बढ़ाया जा सकेगा। तब परमेश्वरी शिवा ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान एक शक्ति को प्रकट किया। शिवजी की यह कांतिमयी शक्ति दक्ष की पुत्री हो गई। इस तरह से ब्रह्माजी को उपकृत कर और अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेव जी के शरीर में प्रविष्ट हो गईं, जिसके बाद से मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हुई और भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप से ही सृष्टि का संचालन हो पाया।