दशग्रीव की शक्तियों से प्रभावित होकर खुद भगवान शंकर ने दिया रावण का नाम, जाने कथा

लंकापति रावण यानी दशग्रीव शिवजी का परमभक्त था, लेकिन उसकी यही भक्ति खुद महादेव के लिए मुसीबत बन गई. रावण को उसकी शक्तियों से प्रभावित होकर खुद भगवान शंकर ने उसे रावण का नाम दिया.

Update: 2021-08-05 12:01 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राक्षस राज रावण का पूर्व नाम दशग्रीव था, लेकिन उसने अपनी घनघोर तपस्या से भगवान शंकर को प्रसन्न कर कई वरदान मांगे थे, जिसके चलते रावण अहंकारी बनकर खुद शिवजी की शक्ति से टकराने चल पड़ा था.

पौराणिक कथाओं के मुताबिक राक्षसराज दशानन के दस सिर और बीस हाथ थे. कुनबे की बात करें तो रावण के छह भाई और दो बहनें थीं. इनके नाम भगवान कुबेर, विभीषण, कुंभकरण, राजा कारा, राजा अहिरावण, कुम्भिनी और शूर्पणखा था. वह परमशक्ति का पर्याय था. तपस्या के बाद शक्ति के मद में आकर रावण खुद शिवजी को कैलाश से लंका में ले जाकर रखना चाहता था. इसके लिए उसने एक बार पूरा पर्वत उठा लिया. मगर यह देखकर चिंतित हुए शिवजी ने पर्वत पर अपना पैर रख दिया और पैर की अंगुली से रावण की अंगुली कुचल दी.
रावण दर्द से कराह उठा, लेकिन वह शिव शक्ति को समझता था, इसलिए उसने तुरंत शिव तांडव स्त्रोतम् का प्रदर्शन शुरू कर दिया. कहा जाता है कि रावण ने अपने दस में एक सिर को वीणा की तुम्बी के रूप में, अपने एक हाथ को धरनी और स्ट्रिंग के रूप में तंत्रिकाओं के उपयोग से एक वीणा का रूप ले लिया, यह रुद्रवीणा भी कही जाती है. रावण की इस शक्ति से प्रभावित होकर शिवजीने उसे 'रावण' यानी जोर से दहाड़ने वाले व्यक्ति का नाम दिया.
रामायण कथा अनुसार रावण ने भगवान राम से लड़ाई में सब कुछ गंवा चुका था, मगर उसे वास्तुकला, शास्त्रों का ज्ञान और ज्योतिष का सबसे बड़ा विद्वान था. कहा जाता है कि उसके दस सिर भी इसी वजह से थे. तंत्र शास्‍त्र और ज्‍योतिष पर दिए ज्ञान को रावण संहिता कहा गया, जो आज भी ज्‍योतिष की सबसे बेहतरीन किताब मानी जाती है.


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