यहां आज भी धड़कता है भगवान श्रीकृष्ण का हृदय, जानें रोचक कथा

आपने कभी सुना है क‍ि पूरी दुन‍िया में कहीं भी क‍िसी का भी हृदय मरने के बाद भी धड़कता हो,

Update: 2021-07-09 17:04 GMT

आपने कभी सुना है क‍ि पूरी दुन‍िया में कहीं भी क‍िसी का भी हृदय मरने के बाद भी धड़कता हो फ‍िर चाहे वह अवतार लेने वाले कोई भगवान ही क्‍यों न रहे हों? लेक‍िन भगवान श्रीकृष्‍ण का हृदय है जो आज भी सद‍ियों बाद धड़क रहा है। तो आइए जानते हैं क‍ि यह कौन सी जगह है जहां आज भी भगवान श्रीकृष्‍ण का हृदय धड़कता है…

जब जल गया संपूर्ण शरीर लेक‍िन हृदय में जल रही थी लौ

कथा म‍िलती है ज‍ब भगवान श्रीव‍िष्‍णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्‍ण के रूप में अवतार ल‍िया तो यह उनका मानव रूप था। सृष्टि के न‍ियम अनुसार इस रूप की मृत्‍यु भी तय थी। ऐसे में महाभारत युद्ध के 36 साल बाद कन्‍हैया की मृत्‍यु हुई। लेक‍िन जब पांडवों ने उनका अंत‍िम संस्‍कार क‍िया तो श्रीकृष्‍ण का पूरा शरीर तो अग्नि को समर्पित हो गया लेक‍िन उनका हृदय था जो धड़क ही रहा था। अग्नि का उसके ऊपर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा और उसमें से एक ज्‍योत जलते ही जा रही थी। तब पांडव चक‍ित रह गए और उन्‍होंने कृष्‍णजी के हृदय को जल में प्रवाह‍ित कर द‍िया।
श्रीकृष्‍ण के हृदय ने ल‍िया जब ऐसा रूप
कहा जाता है क‍ि जल में प्रवाह‍ित श्रीकृष्‍ण के हृदय ने एक लठ्ठ का रूप ले ल‍िया और पानी में बहते-बहते उड़ीसा के समुद्र तट पर पहुंच गया। उसी रात वहां के राजा इंद्रद्युम्न को श्रीकृष्‍ण ने सपने में दर्शन द‍िए और कहा क‍ि वह एक लट्ठ के रूप में समुद्र तट पर स्थित हैं। सुबह जागते ही राजा श्रीकृष्‍ण की बताई हुई जगह पर पहुंचे। इसके बाद उन्‍होंने लट्ठ को प्रणाम क‍िया और उसे अपने साथ ले आए और उसे जगन्‍नाथजी की मूर्ति में रखवा द‍िया।
यहां धड़कता है श्रीकृष्‍ण का हृदय इसल‍िए करते हैं ऐसा
कहते हैं क‍ि जबसे राजा इंद्रद्युम्न ने उस लट्ठ रूपी हृदय को जगन्‍नाथजी की मूर्ति में रखवाया तब से लेकर आज तक वह मूर्ति के अंदर ही है और वह धड़कता भी है। यही वजह है क‍ि प्रत्‍येक 12 वर्ष बाद जब भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति बदली जाती है तो वह हृदय भी नई मूर्ति में रख द‍िया जाता है। मूर्ति बदलने की इस प्रक्रिया को नवा-कलेवर रस्‍म के नाम से जाना जाता है। लेक‍िन जब भी यह रस्‍म न‍िभाई जाती है तो उस समय पूरे शहर की ब‍िजली काट दी जाती है। इसके बाद मूर्ति बदलने वाले पुजारी जब उस हृदय को नई मूर्ति में रखते हैं तो उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। साथ ही हाथों पर भी कपड़े बांध द‍िए जाते हैं।
कोई नहीं देख सकता कन्‍हैया का हृदय, होती है अनहोनी
कन्‍हैया का हृदय बदलते समय आंखों पर पट्टी, हाथ में दस्‍ताने और पूरे शहर की ब‍िजली गुल करने के पीछे यह मान्‍यता है क‍ि अगर क‍िसी ने गलती से भी उसे देख ल‍िया तो उसकी मौत हो जाएगी। यही वजह है क‍ि नवा कलेवर की रस्‍म न‍िभाने से पहले पूरी सतर्कता बरती जाती है। मूर्ति बदलने वाले पुजारी बताते हैं क‍ि जब भी यह प्रक्रिया की जाती है तो उस समय ऐसा लगता है जैसे कोई खरगोश उछलकूद कर रहा हो। हालांक‍ि हाथों में भी कपड़े बंधें होते हैं तो बहुत ज्‍यादा पता साफ-साफ तो नहीं पता चल पाता।
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