जानें क्यों धार्मिक रूप से अक्षय तृतीया के दिन को माना जाता है शुभ

हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया होती है.

Update: 2021-05-14 05:16 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया होती है. शास्त्रों में अक्षय तृतीया के दिन को बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी और नारायण की पूजा का विधान है. साथ ही ये मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य इस दिन बगैर सोचे समझे किया जा सकता है, क्योंकि इस दिन किए हुए कार्यों का कभी क्षय नहीं होता.

इस वजह से अक्षय तृतीया के दिन लोग दान पुण्य के अलावा, सोने व चांदी के आभूषणों की खरीददारी और जमीन आदि कर खरीददारी करते हैं. इस साल की अक्षय तृतीया आज 14 मई 2021 को मनाई जा रही है. जानिए कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में जो युगों पहले अक्षय तृतीया के दिन घटीं, जिसकी वजह से ये दिन और भी शुभ हो गया.
मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं
माना जाता है कि वो अक्षय तृतीया का ही दिन था, जब भागीरथ के तप से गंगा मैया स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. इसलिए अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है.
सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग की हुई थी और द्वापरयुग का समापन और कलयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी. युगों के शुरू होने व समाप्त होने की तिथि होने के कारण इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है.
इसी दिन होती है परशुराम जयंती
भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठें अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था. उन्होंने महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र के रूप में जन्म लिया था. परशुराम सात चिरंजीवी लोगों में से एक हैं. माना जाता है कि वे आज भी धरती पर विद्यमान हैं.
वेद व्यास ने महाभारत लिखने की शुरुआत की
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के पावन मौके पर ही महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत लिखने की शुरुआत की थी, जिसमें गीता भी समाहित है. इस दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है.
सुदामा ने श्रीकृष्ण से की थी भेंट
अक्षय तृतीया को लेकर ये भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा ने इसी दिन द्वारका पहुंचकर भगवान से भेंट की थी और उन्हें कुछ चावल अर्पित किए थे. जिसे प्रेम पूर्वक ग्रहण करने के बाद श्रीकृष्ण ने उनकी निर्धनता को दूर कर दिया था और उनकी झोपड़ी को महल व गांव को सुदामा नगरी बना दिया था. उस दिन से अक्षय तृतीया के दिन दान का महत्व बढ़ गया.
इसलिए होती है मां लक्ष्मी की पूजा
ये भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन कुबेर ने महादेव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था. प्रसन्न होकर जब महादेव ने उनसे वर मांगने के लिए कहा तो कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा. इसके बाद शिव जी ने उन्हें अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करने के लिए कहा. चूंकि लक्ष्मी जी विष्णु भगवान की पत्नी हैं, इसलिए उनकी पूजा नारायण के साथ की की जाती है. तब से अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी और नारायण की पूजा का चलन शुरू हो गया. दक्षिण में अक्षय तृतीया के दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु भगवान और लक्ष्मी माता के साथ कुबेर का भी चित्र मौजूद होता है


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