जानें क्रिसमस पर्व का महत्व और इतिहास

क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो गई हैं

Update: 2020-12-22 15:55 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Christmas 2020: क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो गई हैं. क्रिसमस का पर्व ईसाई धर्म का प्रमुख पर्व है. भारत में भी यह पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है. क्रिसमस को बड़ा दिन भी कहा जाता है. इस दिन को प्रभु यीशु का जन्म हुआ था, जिन्होंने पूरी दुनिया को प्रेम और दया का संदेश दिया था.



क्रिसमस पर क्या करते हैं
क्रिसमस के पर्व पर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं. केक और अन्य उपहार दिए जाते हैं. घरों में सुंदर झांकिया सजाई जाती हैं. क्रिसमस ट्री को खुशियों का प्रतीक मान कर इसे घरों में भव्य तरीके से सजाया जाता है. रात में सांता क्लाज बच्चों को सुंदर सुंदर उपहार प्रदान करते हैं.


क्रिसमस का इतिहास कितना पुराना है
क्रिसमस का इतिहास प्राचीन है. ऐसा माना जाता है कि क्रिसमस शब्द की उत्पत्ति क्राइस्ट से हुई है. दुनिया में पहली बार क्रिसमस का पर्व रोम में 336 ई. में रोम में मनाया गया था. इस दिन को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाने की पंरपरा है.


ईसा मसीह का जन्म ऐसे हुआ था
पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु यीशु ने यूसुफ मरीयम के यहां जन्म लिया था. ऐसा माना जाता है कि मरीयम को एक सपने में भविष्यवाणी सुनाई दी कि उन्हें प्रभु के पुत्र के रूप में यीशु को जन्म देना है. भविष्यवाणी के मुताबिक मरियम गर्भवती हुईं. गर्भवास्था के दौरान मरियम को बेथलहम की यात्रा करनी पड़ी. रात होने के कारण उन्होंने रूकने का फैसला किया, लेकिन कहीं कोई ठिकाना नहीं नहीं मिला. तब एक वे गुफा जहां पुश पालने वाले गडरिए रहते थे. अगले दिन इसी गुफा में प्रभु यीशु का जन्म यहीं हुआ.


सांता क्लॉज का बच्चों को रहता हैं इंतजार
क्रिसमस के पर्व में बच्चों को सांता क्लॉज का इंतजार रहता है. सांता क्लॉज का असली नाम संता निकोलस था. पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद मायरा में हुआ था. ये प्रभु यीशु के परम भक्त थे. सांता बहुत दयालु थे और हर जरूरतमंंद व्यक्ति की मदद किया करते थे. सांता प्रभु यीशू के जन्मदिन पर रात में बच्चों को उपहार देते थे. पारंपरिक रूप से क्रिसमस का पर्व 12 दिनों मनाया जाता है.


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