lakkamma devi temple: कर्नाटक के इस मंद‍िर में चढ़ाते हैं चप्‍पलों की माला, जानिए यह परंपरा

मंद‍िर में देवी मां को लड्डू-पेड़े,मेवा-म‍िष्‍ठान और हलवा-पूरी चढ़ाने के बारे में आपने सुना भी होगा और खुद चढ़ाया भी होगा।

Update: 2021-08-01 15:29 GMT

मंद‍िर में देवी मां को लड्डू-पेड़े,मेवा-म‍िष्‍ठान और हलवा-पूरी चढ़ाने के बारे में आपने सुना भी होगा और खुद चढ़ाया भी होगा। लेक‍िन सोच‍िए जरा अगर कोई आपको यह बताए क‍ि मंद‍िर में देवी मां को लड्डू-पेड़े, मेवा-म‍िष्‍ठान या फ‍िर हलवा पूरी नहीं चढ़ना बल्कि चप्‍पलें चढ़ानी हैं। हो सकता है क‍ि आपको ये मजाक लगे लेक‍िन यह हकीकत है कर्नाटक के एक मंद‍िर की। जहां भक्‍त अपनी मन्‍नतों के ल‍िए देवी मां को चप्‍पल चढ़ाते हैं। तो आइए जान लेते हैं क‍ि आख‍िर क्‍या वजह है जो इस मंद‍िर की इतनी अनोखी परंपरा है…

गजब ही है चप्‍पल चढ़ाने की परंपरा

हम ज‍िस मंद‍िर के बारे में आपको बता रहे हैं वह लकम्‍मा देवी का मंद‍िर है। यह कर्नाटक के कलबुर्गी जिले की आलंद तहसील के गोला गांव में स्‍थाप‍ित है। यहां आने वाले श्रद्धालु देवी मां से मन्नत मांगते समय पेड़ पर चप्पल बांधते हैं। इसके बाद जब मन्‍नतें पूरी हो जाती हैं तो वह मंदिर आकर देवी मां को चप्पलों की माला चढ़ाते हैं। मान्यता है कि श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाई गयी उन्‍हीं चप्‍पलों को पहनकर देवी मां रात में न‍िकलती हैं और मन्‍नतें पूरी करती हैं।
ऐसे शुरू हुई चप्‍पल चढ़ाने की अनोखी परंपरा
लकम्‍मा देवी मंद‍िर में चप्‍पल चढ़ाने की परंपरा ज‍ितनी अनोखी है उतनी ही अनोखी इस परंपरा के शुरू होने की कहानी भी है। कहते हैं क‍ि इस मंदिर में बैलों की बलि देने की परंपरा थी। लेक‍िन सरकार ने इसे गैरकानूनी करार देते हुए पूरी तरह से समाप्त कर दिया। कहते हैं क‍ि बल‍ि की परंपरा बंद होने के बाद देवी मां क्रोध‍ित हो गईं। तब एक ऋषि ने तपस्या कर देवी को शांत किया था। इसके बाद उन्‍होंने बलि के बदले चप्पल चढ़ाई। मान्‍यता है क‍ि तब जाकर देवी मां का क्रोध शांत हुआ और तबसे ही मंद‍िर में चप्‍पल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
लकम्‍मा देवी मंद‍िर का म‍िलता है इत‍िहास
लकम्‍मा देवी के बारे में स्थानीय न‍िवासी बताते हैं क‍ि यह मंदिर काफी पुराना है। पौराण‍िक कथा के अनुसार एक बार देवी मां यहां घूमने आई थीं। एक बार जब मां पहाड़ी पर टहल रही थी। उसी वक्त दुत्तारा गांव के देवता की नजर देवी पर पड़ी और उन्होंने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। उसके बाद देवी उनसे बचने के लिए अपने स‍िर को जमीन में धंसा लिया। तब से लेकर आज तक माता की मूर्ति उसी तरह इस मंदिर में है। इस मंदिर में देवी के पीठ की पूजा की जाती है।
चप्‍पल ही नहीं भोग में चढ़ाते हैं ये वस्‍तुएं भी
श्रद्धालुजन मन्‍नतें पूरी होने के बाद मंद‍िर के बाहर के एक पेड़ पर आकर चप्पलें टांगते हैं। इसके साथ ही देवी को शाकाहारी और मांसाहारी भोजन का भोग भी लगाते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस तरह चप्पल चढ़ाने से ईश्वर उनकी बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं। कहते हैं क‍ि ज‍िन जातकों के पैरों या फ‍िर घुटनों में दर्द होता है वह भी पूरी तरह से सही हो जाता है। लेक‍िन दूसरों का अह‍ित चाहने या फ‍िर सोचने वाले लोगों पर देवी मां कभी भी प्रसन्‍न नहीं होती हैं।


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