जानिए योगिनी एकादशी व्रत, कथा, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

आज 24 जून, शुक्रवार को रखा जाने वाला योगिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।

Update: 2022-06-24 07:33 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज 24 जून, शुक्रवार को रखा जाने वाला योगिनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। सनातन हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि जो भी साधक एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से रखता है उसके समस्त पाप दूर हो जाते हैं। उसके जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। हिंदू पंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। योगिनी एकादशी व्रत में कथा का श्रवण और पाठन बेहद जरूरी है। यदि आप भी भगवान विष्णु की असीम कृपा और समस्त पापों का नाश करने के लिए योगिनी एकादशी व्रत रखते हैं तो आइए जानते हैं इसके शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में।

योगिनी एकादशी तिथि
एकादशी तिथि आरंभ: 23 जून, गुरुवार, रात्रि 09: 41 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त : 24 जून, शुक्रवार, रात्रि11:12 मिनट पर
योगिनी एकादशी पर करें इस विधि से पूजा
सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे और मंदिर में दीपक जलाएं।
इसके उपरांत भगवान विष्णु को पंचामृत से अभिषेक कराएं व उनको फूल और तुलसी दल अर्पित करें।
फिर भगवान विष्णु को सात्विक चीज़ों का भोग लगाकर कपूर से आरती करें।
भगवान विष्णु के साथ-साथ आज पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है।
रात्रि के समय श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए भजन-कीर्तन के द्वारा जागरण करना चाहिए।
संध्या काल में श्री विष्णु का पूजन और आरती करने के बाद फल का सेवन करें।
अगले दिन मंदिर में विष्णु के दर्शन कर व्रत का पारण करने के बाद ही अन्न ग्रहण करे।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
योगिनी एकादशी की कथा के अनुसार स्वर्ग लोक में अलकापुरी नगरी में एक कुबेर नाम का राजा रहता था जो भोलेनाथ का भक्त था। राजा कुबेर नियमित रूप से भोलेनाथ की श्रद्धा पूर्वक पूजा करता था। कुबेर की पूजा के लिए हिना नाम का एक माली उसे पुष्प दिया करता था। लेकिन एक दिन माली अपनी सुंदर पत्नी विशालाक्षी के साथ हास्य-विनोद और रमण करने में मग्न हो गया जिसकी वजह से वह राजा को समय पर पुष्प नहीं दे पाया। जब राजा ने सैनिकों को पता लगाने भेज तो उन्हें माली के न आने का कारण पता लगा। कारण जानकार राजा आगबबूला हो गए। राजा ने माली को क्रोध में आकार श्राप दे दिया। राजा ने कहा कि माली ने भगवान शिव का अनादर किया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं, कि तुम्हें स्त्री का वियोग सहना पड़ेगा और मृत्युलोक में जाकर तू कोढ़ी हो जाएगा। राजा के ऐसा कहने पर माली स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गया और वह कोढ़ी का जीवन व्यतीत करने लगा। माली की पत्नी भी भिखारिन की तरह जीवन व्यतीत करने लगीं। एक दिन माली घूमते-घूमते मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में आ गया। ऋषि ने माली की ऐसी दुर्दशा देखकर उससे इसका कारण पूछा तब माली ने ऋषि को सारी बात बताईं। पूरी बात सुननें के बाद ऋषि मार्कंडेय ने हेम माली को योगिनी एकादशी व्रत करने को कहा। तब उसने ऋषि की आज्ञा से विधि-विधान से आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को योगिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से माली श्राप से मुक्त होकर पुनः स्वर्ग लोक जाकर अपनी पत्नी के साथ सुखी जीवन व्यतीत करने लगा और उसका कोढ़ भी हमेशा के लिए खत्म हो गया।
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