जानिए क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व ?

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है।

Update: 2022-03-30 03:52 GMT

  जानिए क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व ?

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाती है। इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाया जाता है जिसका हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है। गुड़ी का अर्थ है ध्वज अर्थात झंडा और प्रतिपदा तिथि को पड़वा कहा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार गुड़ी पड़वा 2 अप्रैल 2022 को है। इस दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि के बाद विजय के प्रतीक के रूप में घर में सुंदर गुड़ी लगाती हैं और उसका पूजन करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वहां की नकारात्मकता दूर होती है और घर में सुख-शांति खुशहाली आती है। विशेष तौर पर यह पर्व कर्नाटक,गोवा,महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा का दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन खास तरह के पकवान श्री खंड,पूरनपोली,खीर आदि बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा के बारे में कहा जाता है कि खाली पेट पूरन पोली का सेवन करने से चर्म रोग की समस्या भी दूर हो जाती है।

सृष्टि के निर्माण का दिन
धार्मिक मान्यता के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन ही जगतपिता ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया था और सतयुग की शुरुआत इसी दिन से हुई थी।यही कारण है कि इसे सृष्टि का प्रथम दिन या युगादि तिथि भी कहते हैं। इस दिन नवरात्रि घटस्थापन,ध्वजारोहण, संवत्सर का पूजन इत्यादि किया जाता है।
वानरराज बाली पर विजय
रामायण काल में दक्षिण भारत पर बाली का अत्याचारी शासन था। सीताजी को ढूंढ़ते हुए जब भगवान राम की मुलाकात सुग्रीव से हुई तो उन्होंने श्री राम को बाली के अत्याचारों से अवगत कराया। तब भगवान राम ने बाली का वध कर वहां के लोगों को उसके कुशासन से मुक्ति दिलाई। मान्यता है कि यह दिन चैत्र प्रतिपदा का था। इसलिए इस दिन गुड़ी या विजय पताका फहराई जाती है।
शालिवाहन शक संवत
एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़ककर उनमें प्राण फूँक दिए और इस सेना की मदद से दुश्मनों को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी माना जाता है।
हिंदू पंचांग की रचना का काल
कहा जाता है कि प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री ने अपने अनुसन्धान के फलस्वरूप सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए भारतीय 'पंचांग ' की रचना की थी।
अन्य मान्यताएं-
इस दिन उज्जैयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर विक्रम संवत का प्रवर्तन किया था। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
कैसे मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
इस दिन लोग अपने घरों की सफाई कर रंगोली और आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधते हैं। घर के आगे एक झंडा लगाया जाता है और इसके अलावा एक बर्तन पर स्वस्तिक बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर रखा जाता है।इस दिन सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड,रामरक्षास्रोत और देवी भगवती की पूजा एवं मंत्रों का जप किया जाता है।बेहतर स्वास्थ्य की कामना से नीम की कोपल गुड़ के साथ खाई जाती हैं।
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