जानिए अन्य देवताओं से अलग क्यों है महादेव का रूप त्रिशूल, डमरू, नाग, नंदी और चंद्रमा के प्रतीक

देवताओं में भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं जिन्हें महादेव कहा जाता है। भगवान शिव को न सिर्फ मनुष्य भक्ति भाव से पूजते हैं, बल्कि ये सभी देवी-देवताओं के आराध्य और पूजनीय हैं।

Update: 2022-01-03 09:28 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देवताओं में भगवान शिव ही ऐसे देवता हैं जिन्हें महादेव कहा जाता है। भगवान शिव को न सिर्फ मनुष्य भक्ति भाव से पूजते हैं, बल्कि ये सभी देवी-देवताओं के आराध्य और पूजनीय हैं। भगवान शिव की वेशभूषा और पूजा साधना भी अन्य देवी-देवताओं से एकदम अलग है। भगवान भोलेनाथ वहां पर निवास करते हैं जहां कोई दूसरा नहीं रह सकता। लेकिन क्या आपको मालूम है महादेव का स्वरूप दूसरों से अलग क्यों है? उनके माथे पर हमेशा चंद्रमा, गले में सांप, हाथ में त्रिशूल आदि क्यों रहता है। आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य और कथा...

मस्तक पर चंद्रमा क्यों?
भोलेनाथ के मस्तक पर चंद्रमा धारण करने के पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा राजा दक्ष और उनकी 60 पुत्रियों से संबंधित है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष की कुल 60 पुत्रियां थी, जिनमें से 27 पुत्रियों का विवाह अकेले चंद्रदेव से हुआ था। चंद्रदेव सभी 27 पत्नियों में से सबसे ज्यादा स्नेह रोहिणी से करते हैं, इस कारण से बाकी पत्नियां हमेशा उनसे नाराज रहती थीं। जब यह बात राजा दक्ष को पता चली तो उन्होंने क्रोध में आकर चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया। तब चंद्रदेव इस क्षय रोग से छुटकारा पाने के लिए भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या करने लगे। चंद्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको इस श्राप से मुक्ति कर दिया और सदैव अपने मस्तक पर धारण करने का वचन दिया। वहीं दूसरी कथा अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान निकले हुए विष को भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण कर लिया, तब विष के प्रभाव से उनका शरीर जलने लगा था। शरीर के ताप को कम करने के लिए भगवान भोलेनाथ ने मस्तक पर चंद्रमा को धारण कर लिया, जिसके कारण से उनके शरीर का तापमान कम होने लगा।
जटाओं में मां गंगा को मिला स्थान
राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मां गंगा को प्रसन्न किया था और उनसे आग्रह किया कि वे पृथ्वी पर चलकर पूर्वजों को तर्पण कर दें। मां गंगा ने भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके साथ चलने के लिए राजी हो गईं, लेकिन गंगा का वेग इतना ज्यादा था कि स्वर्ग से उतरने पर पृथ्वी उनका तीव्र वेग सहन नहीं कर सकती थी। ऐसे में तब राजा भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या कर भगवान शिव प्रसन्न किया और तब भोलेनाथ ने अपने जटाओं में मां गंगा को धारणकर उनके वेग को कम किया।
हाथ में त्रिशूल
भगवान शिव के हाथों में सदैव त्रिशूल सुशोभित रहता है। मान्याताओं के अनुसार जब इस सृष्टि के जन्म के समय भगवान शिव का उद्भव हुआ तो उनके साथ रज, तम और तस नाम के तीन गुणों का जन्म भी हुआ। त्रिशूल में इन्हीं तीन गुणों का समावेश है। त्रिशूल के तीन भागों को जन्म, पालन और मृत्यु का सूचक माना जाता है।
गले में सांप
समुद्र मंथन के दौरान नागों के राजा वासुकि ने अपने आपको रस्सी की तरह इस्तेमाल होने की बात कही। मान्यताओं के अनुसार नागराज वासुकि भगवान शिव के परम भक्तों थे। तब भगवान शिव प्रसन्न होकर उन्हें हमेशा अपने गले में धारण करने का वचन दिया।
बाघ की खाल
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार ने जब हिरण्यकश्यप का वध किया तब उसके बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। तब भगवान शिव ने शरभ देवता का अवतार लेकर उनको युद्ध में घायल कर दिया और अंत में शरीर का त्याग करते हुए भगवान शिव से हमेशा उनके चमड़े पर आसन के रूप स्वीकार करने का आग्रह किया। तभी से भगवान भोलनाथ बाघ की खाल को आसन के रूप में और शरीर में धारण करते हैं।
डमरू
सृष्टि के आरंभ में जब सरस्वती उत्पन्न हुई तो वीणा के स्वर से सृष्टि में ध्वनि को जन्म दिया, लेकिन यह सुर और संगीत विहीन थी।उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इस प्रकार शिव के डमरू की उत्पत्ति हुई।
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