जानिए भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य करना क्यों है वर्जित
भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व इस साल भद्रा की साया में बीत रहा है। 11 अगस्त को पूरे दिन भद्रा रहने के बाद रात के समय समाप्त होगी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का पर्व इस साल भद्रा की साया में बीत रहा है। 11 अगस्त को पूरे दिन भद्रा रहने के बाद रात के समय समाप्त होगी। ऐसे में रक्षाबंधन की तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी असंजस है कि किस दिन बहनें भाई की कलाई में राखी बांधें। भद्रा काल को अशुभ समय माना जाता है। जानिए आखिर भद्रा काल के समय कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही क्यों होती है।
कौन है भद्रा?
पुराणों के मुताबिक, भद्रा सूर्यदेव की पुत्री है यानी कि शनि की बहन है। कहा जाता है कि शनि की तरह ही भद्रा का स्वभाव भी क्रोधी है। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है।
क्या होता है भद्रा काल?
हिन्दू पंचांग के 5 प्रमुख अंग होते हैं। इन पांचों अंगों के नाम है- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण को महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। ये चर और अचर में बांटे गए हैं। चर या गतिशील करण में बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि गिने जाते हैं। अचर या अचलित करण में शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न होते हैं। इन 11 करणों में 7 वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। यह सदैव गतिशील होती है। पंचांग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अलग-अलग राशियों के माध्यम से भद्रा तीनों लोकों में घूमती रहती है। जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक या उनका नाश करने वाली मानी गई है। ऐसे में शुभ कार्य किए जाते हैं। जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। इस अवस्था में सभी कार्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं।