जानिए ब्रह्मांड में ऋग्वेद के देवताओं का स्थान किसने और क्यों दिया

Update: 2024-06-25 04:16 GMT

ऋग्वेद के देवताओं का स्थान:- ( Place of Gods of Rigveda )

ऋग्वेद के सूक्तों में देवताओं की स्तुतियों से देवताओं की पहचान Identification of gods through praises की जाती है, इनमें देवताओं के नाम अग्नि, वायु, इन्द्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, विश्वदेवा, सरस्वती, ऋतु, मरुत, त्वष्टा, ब्रहम्णस्पति, सोम, दक्षिणा इन्द्राणी, वरुनानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि को पहचाना गया है, और इनकी स्तुतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
जो लोग देवताओं की अनेकता को नहीं मानते है, वे सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मा वाचक लगाते है Meaning of Parabrahma Paramatma is used by the reader, और जो अलग अलग मानते हैं वे भी परमात्मात्मक रूप में इनको मानते है। भारतीय गाथाओम और पुराणों में इन देवताओं का मानवीकरण अथवा पुरुषीकरण हुआ है, फ़िर इनकी मूर्तियाँ बनने लगी, फ़िर इनके सम्प्रदाय बनने लगे, और अलग अलग पूजा पाठ होने लगे देखें (हिन्दू धर्मशास्त्र-देवी देवता),
सबसे पहले जिन देवताओं का वर्गीकरण हुआ Classification of gods उनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हुआ Brahma, Vishnu and Shiva arose, इसके बाद में लगातार इनकी संख्या में वृद्धि होती चली गयी, निरुक्तकार यास्क के अनुसार," देवताऒ की उत्पत्ति आत्मा से ही मानी गयी है", देवताओं के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है, कि "तिस्त्रो देवता".अर्थात देवता तीन है, किन्तु यह प्रधान देवता है, जिनके प्रति सृष्टि का निर्माण, इसका पालन और इसका संहार किया
 obeyed it and destroyed it 
जाना माना जाता है। महाभारत के (शांति पर्व) में इनका वर्णनक्रम इस प्रकार से किया गया है:-
आदित्या: क्षत्रियास्तेषां विशस्च मरुतस्तथा, अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ, स्मृतास्त्वन्गिरसौ देवा ब्राहमणा इति निश्चय:, इत्येतत सर्व देवानां चातुर्वर्नेयं प्रकीर्तितम
आदित्यगण क्षत्रिय देवता, मरुदगण वैश्य देवता, अश्विनी गण शूद्र देवता, और अंगिरस ब्राहमण देवता माने गए हैं। शतपथ ब्राह्मण में भी इसी प्रकार से देवताओं को माना गया है ।
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