जानिए किस दिन है काल भैरव जयंती और पूजा महत्व
हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी का व्रत किया जाता है
हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी का व्रत (Kalashtami vrat 2021) किया जाता है, लेकिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti 2021) के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कालभैरव का अवतरण हुआ था. इस साल कालभैरव जयंती 27 नवंबर, शनिवार (Kaal Bhairav Jayanti 2021) की पड़ रही है. इस दिन भगवान भैरव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना (Kaal Bhairav Puja) की जाती है. बता दें कि भगवान भैरव भगवान शिव का ही रोद्र रूप हैं. इस दिन प्रातः काल स्नान आदि करने के बाद व्रत आदि का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद रात्रि के समय कालभैरव की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं कालभैरव जयंती के महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में.
कालभैरव जयंती का महत्व (Kaal Bhairav Jayanti Importance)
कालभैरव जयंती के दिन पूजा आदि करने से व्यक्ति को भय से मुक्ति प्राप्त होती है. इतना ही हीं, कालभैरव की पूजा करने से ग्रह बाधा और शत्रु बाधा दोनों से ही मुक्ति मिलती है. ग्रंथों के अनुसार अच्छे कार्य करने वाले लोगों के लिए कालभैरव भगवान का स्वरूप कल्याणकारी हैं. वहीं, अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं. इतना ही नहीं, ये भी कहा जाता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों के साथ अहित करता है उसे तीनों लोगों में कहीं भी शरण नहीं मिलती.
कालभैरव जयंती शुभ मुहूर्त (Kaal Bhairav Jayanti Shubh Muhurat 2021)
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 27 नवंबर 2021, शनिवार को प्रातः 05 बजकर 43 मिनट से लेकर
मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समापन- 28 नवंबर 2021, रविवार को प्रातः 06:00 बजे होगा.
भगवान कालभैरव की पूजन विधि (Kaal Bhairav Pujan Vidhi)
- कालभैरव अष्टमी तिथि के दिन प्रातः काल स्नानादि करने के बाद साफ वस्त्र दारण करें और व्रत का संकल्प लें.
- इस दिन भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाकर पूजन करें.
- मान्यता है कि कालभैरव भगवान का पूजन रात्रि में करना चाहिए.
- कालभैरव अष्टमी के दिन शाम के समय किसी मंदिर में जाकर भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं.
- भगवान को फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करें.
- इसके बाद, भगवान के सामने आसन पर बैठकर कालभैरव चालीसा का पाठ करें.
- पूजन पूर्ण होने के बाद आरती अवश्य करें. साथ ही, जानें-अनजाने हुई गलतियों की क्षमा मांगे.