जानिए कब है माघी पूर्णिमा व्रत
हिंदी पंचांग के अनुसार, वर्ष के हर महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा मनाई जाती है।
Magh Purnima 2022: हिंदी पंचांग के अनुसार, वर्ष के हर महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के अगले दिन पूर्णिमा मनाई जाती है। इस प्रकार, माघ माह की पूर्णिमा 16 फरवरी को है। इस दिन सत्यनारायण की पूजा-उपासना और पूर्णिमा व्रत करने का विधान है। इसमें भगवान श्रीहरि विष्णु जी के नारायण रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से व्रती के जीवन से दुख-शोक का नाश और सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। साथ ही पुत्र प्राप्ति के योग बनते हैं। इस दिन पूजा, जप, तप और दान से न केवल चंद्र देव, बल्कि भगवान श्रीहरि की भी कृपा बरसती है। आइए, सत्यनारायण कथा और पूर्णिमा पूजा विधि जानते हैं-
कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में एक बार जब भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे। उस समय नारद जी वहां पधारे। नारद जी को देख भगवान श्रीहरि विष्णु बोले- हे महर्षि आपके आने का प्रयोजन क्या है? तब नारद जी बोले-नारायण नारायण प्रभु! आप तो पालनहार हैं। सर्वज्ञाता हैं। प्रभु-मुझे ऐसी कोई लघु उपाय बताएं, जिसे करने से पृथ्वीवासियों का कल्याण हो।
तदोपरांत, भगवान श्रीहरि विष्णु बोले- हे देवर्षि! जो व्यक्ति सांसारिक सुखों को भोगना चाहता है और मरणोपरांत परलोक जाना चाहता है। उसे सत्यनारायण पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके बाद नारद जी ने भगवान श्रीहरि विष्णु से व्रत विधि बताने का अनुरोध किया।
तब भगवान श्रीहरि विष्णु जी बोले- इसे करने के लिए व्यक्ति को दिन भर उपवास रखना चाहिए। संध्याकाल में किसी प्रकांड पंडित को बुलाकर सत्य नारायण की कथा श्रवण करवाना चाहिए। भगवान को भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। इससे सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं।
पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म बेला में उठें और घर की साफ़-सफाई करें। कोरोना वायरस महामारी के चलते पवित्र नदियों में स्नान करना संभव नहीं है। ऐसे में घर पर ही गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान कर सर्वप्रथम भगवान भास्कर को ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें। इसके बाद तिलांजलि दें। इसके लिए सूर्य के सन्मुख खड़े होकर जल में तिल डालकर उसका तर्पण करें। फिर ठाकुर और नारायण जी की पूजा करें। भगवान को भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। अंत में आरती-प्रार्थना कर पूजा संपन्न करें। इसके बाद जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें